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[ छठवां प्रकरण
बादको पैदा हुये पुत्रका पिताकी जायदाद में हिस्सा है - ओङ्कारेश्वर बनाम दुशान्तप्रसाद A-1. R. 1925 Oudh 56.
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मुश्तरका खान्दान
सुश्तरका खान्दान-बंटवारा-टवारे के सम्बन्धमें फ़रीक़ों के बीचका एक बड़ी शहादत है -- अलाहिदी के प्रमाणित करने की जिम्मेदारी उस पक्षपर होती है जो कि इसे पेश करता है जबकि कोई खान्दानी जायदादका होना क़बूल कर लिया जाता है - हरनारायन पांडे बनाम सुरेश पांडे A. I.
R. 1925 Oudh. 56.
पुत्रका अधिकार जब वह जायदाद बापके हक़ से निकल जानेके बाद पैदा हुआ हो -- कोई हिन्दू पुत्र, उसके पिता के खिलाफ दीगई रेहननामेकी डिपर एतराज़ नहीं कर सकता, जबकि वह, पिताके उस जायदादसे अधिकार चले जाने के बाद पैदा हुआ हो, नरायन बनाम मु० धूधाबाई 21 Nag. L. R. 38; A I. R. 1925 Nag. 299.
दायभाग लॉ
दायभागला के अनुसार कोपार्सनर और कोपार्सनरी जायदाद
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दफा ४६१ दायभागलॉके अनुसार मुश्तरका ख़ानदान की खास पहिचान
कोपार्सनर और कोपार्सनरी जायदाद के सम्बन्धमें दायभाग लॉ-- मिताक्षराला से बिल्कुल भिन्न है, परन्तु जहां दायभागमें कुछ नहीं कहा गया वहां पर जहां तक सम्भव है मिताक्षराला ही माना जाता है क्योंकि बङ्गाल में भी मिताक्षराला का प्रमाण सबसे ऊंचे दर्जेका माना जाता है, जहां पर मिताक्षरा और दायभाग में मतभेद होता है वहीं पर सिर्फ दायभागला बङ्गाल में माना जाता है; देखो -- कलक्टर आफ मदुरा बनाम मोटोराम लिंग 12 M. I. A. 397-105. भगवानदीन बनाम मैनाबाई 11 M. I. A. 487-507. अक्षय बनाम हरीदास 35 Cal. 721.
पैतृक सम्पत्ति में पिता और पुत्रोंके अधिकारके सम्बन्धमें दायभाग के सिवाय दो और भी ग्रन्थ हैं जो बङ्गालमें मान्य है १ - दायतत्व २ - दायक्रम संग्रह दायत्व कर्ता हैं पं० रघुनन्दन जो सोलहवीं शताब्दी में हुये और दायक्रम संग्रह कर्ता हैं श्रीकृष्ण तत्वालंकार जो अट्ठारहवीं शताब्दी में हुये यह दोनों ग्रन्थ वरासतसे सम्बन्ध रखते हैं देखो - दफा २३-५.