________________
५४४
मुश्तरका खान्दान
[छठवां प्रकरण
मुश्तरका जायदादका इन्तकाल मंसूख कराना
दफा ४५५ दानका ममूख़ कराना
मिताक्षरा के अनुसार कोई कोपार्सनर न तो मुश्तरका जायदादके अपने हिस्सेको, या अपने लाभ को दान कर सकता है और न किसी को दे सकता है यदि कोई ऐसी लिखा पढ़ी की गयी हो तो दूसरे कोपार्सनरों के एतराज़ करनेपर अदालतसे बिल्कुल मन्सुख कर दी जायगी। परन्तु बाप : पैतृक मनकूला जायदादका दान कहां तक कर सकता है या किसी देवताके लिये कहां तक दानकर सकता है यह बात इस किताबकी दफा ४१८-३, ७६६ में बतायी गयी है। . मुश्तरका जायदादसे दिया हुआ दान-उस सूरतमें भी जब वह दाता के हिस्सेके अन्दर हो नाजायज़ है--पिताको अधिकार है कि वह पुत्रीके हक में उचित दान करे, किन्तु वह भी विधवा या माताके हकमें दान नहीं कर सकता--एम० सुब्बाराव बनाम अदेम्मा 83 I. C. 72; A.l. R.1925Mad. 60; 47 M. L. J. 465. दफा ४५६ बिक्री और रेहनका मंसूख करना
बम्बई और मदरास प्रांतमें जिस तरह से कि मिताक्षरा लॉ का अर्थ मानागया है उसके अनुसार यदि मुश्तरका खान्दानका कोई कोपार्सनर अपने हिस्सेसे ज्यादा मुश्तरका जायदादका कोई भाग बेच दे या रेहन कर दे या किसी दूसरी तरहसे इन्तकाल कर दे तो दूसरे कोपार्सनरोंके उजुर करने पर वह विक्री या रेहन या इन्तकाल केवल उसी एक बेंचने वाले कोपार्सनरके हिस्से तक लागू समझा जायगा । अर्थात् जिस कदर कि बेंचने वाले कोपार्स. नरका हिस्सा होगा उसका इन्तकाल जायज़ माना जायगा और जिस कदर कि उसने दूसरे कोपार्सनरों का ज्यादा हिस्सा बेंच, या रेहन या इन्तकाल कर दिया है वह नाजायज़ माना जायगा। इसका कारण यह है कि हरएक कोपासेनर अपने हिस्सेको बेच या रेहन या इन्तकालकर सकता है; देखो-श्रीपति चिना बनाम श्रीपति सूर्य Mad.196 माराप्पा बनाम रंगसामी 23 Mad.89.
(२) बङ्गाल और संयुक्त प्रांतमें मितक्षराला मानने वाले मुश्तरका खान्दानका कोई कोपार्सनर मुश्तरका जायदादको या उसका कोई हिस्सा अपने हिस्से से ज्यादा बेंचदे या रेहन करदे या किसी दूसरी तरहसे इन्तकाल कर दे, अथवा केवल अपनाही हिस्सा दूसरे कोपार्सनगेकी रज़ामन्दीके बिना बेचदे या रेहन करदे या किसी दूसरी तरहसे इन्तकाल कर दे