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मुश्तरका खान्दान
[छठवां प्रकरण
खान्दानकी जायदादके मुश्तरका लाभको बिना दूसरे कोपार्सनरोंकी मंजूरीके कीमतके बदले में किसी तरहका इन्तकाल नहीं कर सकता: देखो-माधोप्रसाद धनाम मेहरवानसिंह 18 Cal, 157; 17 I. A. 194. सदावर्तप्रसाद बनाम फूलवास 3 Beng. L. R. F. B. R. 31. कालीशङ्कर बनाम नवाबसिंह 81 All. 507. बालगोविन्ददास बनाम नरायनलाल 15 All. 339-351; 20 I. A. 116-125. और देखो मुहम्मद बनाम मिथ्थूलाल 31 All. 783. चन्द्रा बनाम दम्पति 16 All. 369.
मगर बाप या दादा मुश्तरका खान्दानकी जायदादका इन्तकाल कर सकता है देखो दफा ४४८. मिताक्षरालॉका दृढ़ सिद्धान्त है, कि हर एक कोपार्सनर मुश्तरका खान्दानकी सम्पूर्ण जायदादमें मालिकाना अपना हक़ रखता है इसलिये कोई एक कोपार्सनर बिना दूसरे कोपार्सनरोंकी मंजूरीके मुश्तरका खान्दानकी जायदादकी किसी आमदनीको इन्तकाल नहीं कर सकता । मिताक्षरालॉ का यह सिद्धान्त दृढ़ताके साथ बङ्गाल और संयुक्तप्रांत में माना जाता है, लेकिन बम्बई और मदरास प्रांतमें मिताक्षरालॉ का उक्त दृढ़ सिद्धान्त मुश्तरका खान्दानकी जायदादके इन्तकालके सम्बन्धमें मुलायमियतके साथ बर्ताव में लाया जाता है।
भावी वारिसोंकी मंजूरीसे विधवाका इन्तकाल-विधवा द्वारा किसी पूर्व इन्तकाल जायदादमें किन्ही कल्पित भावी वारिसोंकी स्वीकृत लिये जाने के कारण, वरासतका समय आनेपर जीवित भावी वारिसोंके, चाहे वे भावी वारिसोंके पुत्रही हों, किसी मौजूदा इन्तकालमें कानूनी आवश्यकतापर एतराज करने में बाधा नहीं पड़ती-तुकाराम बनाम गनपत 26 Cr. L.J. 327 (2); 84 1. C. 551 (2); A. I. R. 1923 Nag. 156. दफा ४४८ जब बापने अपना क़र्जा चुकानेके लिये जायदाद
का इन्तकाल किया हो उन सय प्रान्तोंमें जिनमें कि मिताक्षराला माना जाता है, अगर किसी हिन्दू मुश्तरका खान्दानका फैलाव सिर्फ़ बाप और उसके लड़कोंही तक हो तो बाप अपने निजके कर्जे या पहिलेके कोंके लिये मुश्तरका खान्दानकी जायदादका अपना हिस्सा और अपने लड़कोंका भी हिस्सा दोनों बेच सकता है और रेहन कर सकता है। अगर वह कर्जे किसी अनुचित या कानूनन् नाजायज़ काम के लिये लिये गये हों तो नहीं कर सकता । यही कायदा उस मुश्तरका खान्दानसे भी लागू होगा जो दादा और पोताके दर्मियान बना हो, फारण यह है कि हिन्दू धर्म शास्त्रोंमें कहा गया है कि लड़का अपने बाप और बादाके कोंके अदा करनेका पाक्न्द और जिम्मेदार है तथा उन क्रोंकी