________________
मुश्तरका खान्दान
[छठवां प्रकरण
मुकद्दमेंमें प्रिवी कौन्सिलने मदरास हाईकोर्टकी राय नहीं मानी कहा कि मदरास हाईकोर्ट जितनी दूर जाती है वहां तक जाना ठीक नहीं है।
(६) अगर दो या दो से ज्यादा मेनेजर हों, और उन सबके नाम से कंट्राक्ट लिया गया हो तो वह सब मुद्दई बनाये जावेंगे; देखो-6 Cal. 815; 33 All. 272, 278. दफा ४३६ दौरान मुक़दमेंमें कोपार्सनरोंका फरीक बनाया जाना
और मियाद अगर कोई मुकद्दमा अदालतमें एक या कुछ कोपार्सनरोंने दाखिल किया हो और अदालतकी रायमें सब कोपार्सनरोंको मुद्दई बनाया जाना ज़रूरी समझ पड़े तो अदालत अपने अधिकारसे अथवा किसी मुद्दई या मुद्दाअलेह के अर्ज करनेपर बाक़ीके सब कोपार्सनरोंको फरीक बनाये जानेका हुक्म दे सकती है। लेकिन अगर दूसरे कोपार्सनरोंके मुद्दई बनाये जाने तक उनके सम्बन्धमें वह मुक़दमा यदि तमादी होगया हो तो वह कुल मुक़द्दमा डिस्मिस् यानी नारिज किया जायगा; देखो-कालिदास बनाम नाथू 7Bom 217; 32 Mad. 284; और देखो कानून मियाद सन १९०८ ई० की दफा २२.
ऊपर कही हुई कानून मियाद सन १९०८ ई० की दफा २२ का मतलब यह है कि "अदालतमें नालिश दायर कर देनेके पश्चात् उसी नालिशमें कोई मुद्दई या मुद्दाअलेह कायम किया जाय या ज्यादा किया जाय तो उसकी निस्बत नालिशका दायर होना उस वक्त से माना जायगा जिस वक्तसे कि नया मुद्दई या मुद्दाअलेह बनाया गया है, मगर शर्त यह है कि जब कोई मुद्दई या मुद्दाअलेह मर जाय और नालिश उसके कायम मुकाम वारिसकी तरफसे दायर है तो उस नालिशका दायर होना उसी वक्तसे शुमार किया जावेगा जब कि पहिले दफा दायर हुई थी" जो मुक़द्दमा सब कोपार्सनरोंको मिलकर दायर करना चाहिये था उसे अगर सिर्फ मेनेजरने दायर किया हो तो ऐसे मामलेसे ऊपरका कायदा सबका सब लागू नहीं होता । बम्बई हाईकोर्ट की रायके अनुसार ऐसे मामले में तीन सवालों पर विचार करना निहायत ज़रूरी है
(१) क्या जो कोपार्सनर मुद्दई नहीं बनाये गये वह सब बालिग हैं ? ( २ ) क्या उन्होंने (बालिग कोपार्सनर ) इस दावा के दायर किये
जानेमें रज़ामन्दी दी थी ? (३) क्या मुद्दाअलेहने मुकद्दमेके आरम्भमें ऐसा उन किया था कि
अमुक कोपार्सनर मुद्दई बनाये जाये ?