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दफा ४३० ]
अलहदा जायदाद
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उस जायदादकी रक्षाके लिये हो, अर्थात् कोई ऐसा काम, जो उस जायदादकी रक्षाके लिए करना हो, जो पहिलेहीसे कब्जे में हो, किन्तु वह ऐसा काम न हो जिसके द्वारा कोई नवीन जायदाद कब्जे में लाई जानी हो और जोकि उन मौकों लिहाज़से, जो अदालती कार्यवाहीमें आवश्यक होते हैं कामयाब होया न हो। शङ्करसाही बनाम रैचू राम 23 A. L. J. 204; L. R. 6 All. 214; 47 A. 381; 86 1. C. 769; A. I. R. 1925 All. 333.
किसी सदस्य द्वारा रेहननामा-सूदकी दरके लिये भी कानूनी प्राव श्यकताका सुबूत दिया जाना चाहिये, बखतावरसिंह बनाम बनतावरसिंह A. I. R. 1925 Oudh. 235.
आया वह मां जिसने अपने पुत्रकी जायदाद, वरासतसे प्राप्त किया हो, अपने पतिके सम्बन्धी की शादी करने के लिये जायदाद रेहन करनेकी अधिकारिणी है-कानूनी आवश्यकता देखो हिन्दूलॉ स्त्री वारिसोंकी वरासत 1925 P. H. C. C. 271.
दस्तावेज़में वर्णन किया जाना सबूत नहीं है-मु. राजवन्ती बनाम रामेश्वर 28 0.C. 393; A. I. R. 1925 Oudh. 440.
एक मुश्तरका खान्दानके पिताने ५६६५) का एक बयनामा किया। यह ज्ञात हुआ कि उस रकममें से २५६ma) आवश्यक कार्यके लिये न थे और उसकी पाबन्दी पुत्रपर नहीं है। पुत्रने दस्तावेज़ बयनामेके मंसूख करानेके लिये नालिश की।
तय हुआ कि डिक्रीकी मुनासिब शकल यह होगी, कि बयनामेकी स्वीकृति दी जाय, क्योंकि वह रकम जो अनावश्यक बतायी गयी है, बहुतही कम है और खरीदारको, अब २५६॥=) भी अदा करनेके लिये शेष नहीं है क्योंकि उसने वह रकम पिताको अदा करदी है। लालबहादुरलाल बनाम कमलेश्वरनाथ 48 A. 183; 24 A. L.J.52; A. I.R. 1925 All.624.
बेनीराम बनाम रामसिंह के मुकदमे में बाप ताज़ीरात हिन्द की दफा ४६७ और.४७१ के अनुसार सेशन सिपुर्द हुआ था इस मुकद्दमेके खर्चके लिये बापने मुश्तरका खान्दान की जायदाद रेहन की थी। पीछे उसके एक लड़के ने इसपर आपत्ति की, अदालत ने माना कि लड़के, और पोतों की जायदाद भी उस खर्च की ज़िम्मेदार है, मुकद्दमा खारिज कर दिया। (ख) हिन्दू खान्दानकी मुश्तरका जायदाद के रेहन रखनेके विषयमें .
मेनेजरके अधिकार पर प्रिवीकौंसिलने, हनूमानप्रसाद बनाम मुसम्मात बबुई 6. M. I. A. 393, के मुकदमे में विचार किया था। उस मुकदमे में सवाल यह था कि नाबालिग वारिस की माताका अधिकार बहैसियत मेनेजर या वलीके क्या है,