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दफा ४२५ ]
एक तनख्वाहदार एजेन्ट या ट्रस्टीकी तरह कम खर्च करनेके लिये या रुपया बचाने के लिये मजबूर नहीं है। एजेन्ट और ट्रस्टी मजबूर हैं कि वह कम खर्च करें तथा रुपया बचावें । खानदानके मेम्बर जितना खर्च होना मुनासिब समझते हैं अगर मेनेजर उससे अधिक खर्च करता है तो इसका इलाज और कुछ नहीं है सिवाय बटवारा करा लेनेके; देखो -भवानी बनाम जगरनाथ (1909) ) 13 Cal. W. N. 303; ताराचन्द बनाम रविराम 3 Mad. H. C. 177.
अलहदा जायदाद
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अगर मेनेजरने खानदान के दूसरे लोगों के हिस्से के रुपये खुद खर्चकर डाले हों या ऐसे काममें खर्च किये हों जिससे मुश्तरका खानदानका कुछ सम्बन्ध न हो तो मेनेजर रुपयेका देनदार होगा। यह रुपया उसकी अलहदा जायदादसे वसूल होगा देखो - अभय चन्द्र बनाम प्यारी मोहन ( 1870 ) 5 Beng. L. R. 347, 349.
आहिदा जो व्यक्तिगत हो -- किसी मुश्तरका खान्दानके मैनेजर द्वारा किया हुआ व्यक्तिगत मुद्राहिदा खान्दानके अन्य सदस्योंपर लागू नहीं होता, किन्तु इस कारण से मैनेजरके, उस मुआहिदेको, अपने हिस्सेपर कार्यान्वित करनेमें बाधा नहीं पड़ती, देखो - तानूमल बनाम गङ्गाराम A. I. R. 1925 Sindh 103.
मन्दिरमें लगा सकता है-मुश्तरका खान्दानका मेनेजर, मुश्तरका खान्दानकी जायदादका कुछ भाग, किसी मन्दिरके निमित्त किसी खान्दानी सदस्यकी मृत्युपर अर्पित कर सकता है, औदिप्पा नायडू बनाम मुधू लक्ष्मी अची ( 1925 ) M. W. N. 653; A. I. R. 1925 Mad. ... 128; . A. I. R. 1926 Mad. 128.
साझीदार मेनेजर - जब किसी मुश्तरका खान्दानका मेनेजर किसी अन्य व्यक्ति के साथ साझी होता है तो खान्दानके अन्य व्यक्ति, उसके द्वारा साझी नहीं समझे जाते, हमनदास बनाम फर्म मायादास लक्ष्मीचन्द 87 I... C. 905; A. 1. R. 1925 Sind. 310.
साझीदारी जब किसी मुश्तरका खान्दानका मैनेजर किसी अन्य व्यक्ति के साथ साझीदार होता है तो खान्दानके अन्य सदस्य, उसकी साझीदारी के कारण, साझीदार नहीं होते । यदि वे साझीदारीका दावा करें, तो उन्हें दूसरी बातोंकी तरह इसे भी साबित करना होता है । इस प्रकारका सुबूत न होने पर, वे केवल अपने मेनेजरको हो उसका जिम्मेदार समझ सकते हैं और वे . उससे अलाहिदगी या हिसाब आदिके लिये नालिश नहीं कर सकते । साझीदार मैनेजर की मृत्युपर साझीदारी समाप्त हो जाती है, हेमराज कानजी बनाम टोपेन विशिन जी 86 I. C. 950; A. I. R. 1925 Sind 300.