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दफा ४२२ ]
अलहदा जायदाद
मुश्तरका है । इसके खिलाफ़ सुबूतका बोझा उस पक्षपर है जो उसे मुश्तरका न बताता हो - नीसकृष्टो बनाम बीरजन्द 12 M. 1. 4233 540, नरगुन्टी बनाम पैगामा 9 MIA 66 4 M. 1, A. 137, 168.
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मुश्तरका खानदान के लोगों का अलाहदा अलहदा रहना और अलहदा अलहदा खानपान करना इस बात की कोई दलील नहीं होगी कि वह लोग मुश्तरका नहीं हैं अर्थात् ऐसा होने पर भी वह मुश्तरका माने जायेंगे । देखो गनेशदत्त बनाम जीवाच ( 1903 ) 31 Cal. 262531 1. A. 10
31 Mad. 482.
महर्षि बृहस्पति ने कहा है - जो भाई एक साथ रहते और खाते पीते हों उनके घरमें पूर्वजों, देवताओं और ब्राह्मणों की एकही पूजा सबके लिये काफी होगी, परंतु जिस खानदान के लोग अलहदा अलहदा रहते हों तो उन सबके घरमें अलहदा अलहदा पूजा होनी चाहिये ।
( २ ) जब किसी मुक़द्दमें में यह साबित किया गया हो कि कोई हिन्दू खानदान किसी समय मुश्तरका था तो जबतक कि यह साबित न कियाजाय कि बटवारा हो चुका है तबतक क़ानूनमें यही माना जायगा कि वह खानदान अब तक मुश्तरका है; चीथा बनाम मिहीलाल 11 M. I. A 369; प्रीतकुबेर बनाम महादेव 22 Cal. 85. 21 I. A. 1343
( ३ ) अगर कोई कोपार्सनर अपने दूसरे कीपार्सनरोंसे अलग होजाय तो यह मान लेने का कोई सबब नहीं है कि दूसरे कोपार्सनर मुश्तर का ही बनै रहे अर्थात् यह माना जासकता है कि एक आदमी के अलग होते ही सब लोग अलग होगये थे । वालावकस बनाम रुखमाबाई 30 Cal. 725; 301 A 130g
( ४ ) किसी खानदान के मुश्तरका होनेसे ही यह अनुमान नहीं कर लिया जा खकता कि उस खानदान के क़ब्ज़ में कोई मुश्तरका या कोई भी जायदाद है अर्थात् विना किसी जायदाद के रखने पर भी खानदान मुश्तरका हो सकता है । मूलजी बनाम गोकुलदास 8 Bom 154; तुलसीदास बनाम प्रेमजी 13 Bom L. R. 133; राम के उन बनाम टुंडामल 33 AH 677; परन्तु जब किसी मुकद्दमेमें यह साबित किया गयाहो या मंजूर किया गया हो कि कोई हिन्दू खानदान एक साथ रहता है और एक साथ खाता पीता है और उसके कब्ज़े में जायदाद भी मुश्तरका है । तो क़ानून यही अनुमान करेगा कि उस खानदान के क़ब्ज़े की सब जायदाद मुश्तरका हैं । ऐसे खानदानका कोई एक आदमी अगर खानदान की जायदाद का एक टुकड़ा अपनी अलग जायदाद बताये तो इस बातके साबित करनेका बोझ उसी पक्ष पर होगा चाहे वह जायदाद उसी के नामसे ही खरीदी गई हो या रसीदें