________________
४७०
मुश्तरका खान्दान
[छठवां प्रकरण
मुश्तरका खान्दान-कोई जायदाद मुश्तरका जायदाद समझी जायगी, जबकि दूसरी जायदाद मुश्तरका होगी और खान्दान भी मुश्तरका होगा। मुनेश्वर तिवारी बनाम राम नारायण I. L. R. 6 All. 103 (Rev); 86 1. C. 852; A. I. R. 1925 All. 820.
मुश्तरका अवस्था-जब शहादतसे यह विदित हो कि कोई जायदाद किसी वक्त किसी एक सदस्यके नाम खरीदी गई थी और कोई दूसरी जायदाद किसी दूसरे अवसर पर किसी दूसरे मेम्बरके नाम, किसी एक सदस्य द्वारा किसी दूसरेका कर्ज चुकाया गया या कोई आम क़र्ज़ या हिसाब हो, तो यह स्पष्ट है कि खान्दानकी अवस्था मुश्तरका खान्दानकी है। केवल गांव के कागज़ोंमें अलाहिदा हिस्सोंका दिखाया जाना, ऊपरकी बातोंसे निकलने वाले मुश्तरका अवस्थाको रद्द नहीं कर सकता । भागवानी कुंवर बनाम मोहनसिंह 23 A. L. J. 589 (1915 ) M. W. N. 421; 41 C. L. I. 591; 22 L. W.211; 88 I. C. 385, 29 C. W. N. 1037, A. I. R. 1925 P. C. 1323 49 M. LJ. 55 ( P. C.).
हिबाकी जायदाद कब मुश्तरका मानी जायगी-जब किसी संयुक्त हिन्दू परिवारके मैनेजरने, जिसमें कि वह स्वयं, उसके भाई और पुत्र शामिल है; हिवा द्वारा प्राप्त जायदादको बतौर संयुक्त जायदादके व्यवहृत किया और किसीका अलाहिदा हिसाब नहीं रक्खा, बल्कि दोनोंकी आमदनी और खर्च एकमेंही मिलाता रहा।
तय हुआ कि इस प्रकारकी कार्यवाहीसे हिबा द्वारा प्राप्त हुई जायदाद, पूर्वजों की जायदादके साथ मिला देनेसे स्वयं उपार्जित जायदाद न रहकर पूर्वजोंकी जायदाद होगई। बरबन्ना संगप्पा बनाम परवनिंग बासप्पा. A. I. R. 1927 Bom. 68.
स्वयं उपार्जित जायदाद, फरीकोंके बर्तावसे मुश्तरका जायदाद हो जाती है । श्याम भाई बनाम पुरुषोत्तम दास 21 L. W. 5813 90 I. C. 124; A. I. R. 1925 Mad. 645,
मालकी अदालतमें नाम दर्ज होना खास प्रमाण नहीं है-मालगुज़ारी के कागजों में पृथक नामोंका दाखिला स्वयं हिन्दू परिवारके संयुक्त होनेके प्रतिकूल प्रमाण नहीं है और न उससे यही प्रमाणित होता है कि उनका जायदादपर पृथक पृथक कब्ज़ा है जब कि जायदादका संयुक्त होना स्वीकार किया गया हो-पच्चू बनाम नाथू 7 L. R. 24 ( Rev.).
जब यह स्वीकार कर लिया जाता है या साबित हो जाता है कि खान्दानमें कुछ केन्द्रीय जायदाद है तो उस दूसरे फरीककी जिम्मेदारी हो जाती है कि वह यह साबित करे कि वह मुश्तरका खान्दानकी स्वयं उपा