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________________ दफा ४१५-४१७] कोपार्सनरी प्रापटी ४५६ दका ४१६ मुश्तरका जायदाद दो तरहकी होती है (१) हिन्दू-लॉके अनुसार जायदाद दो हिस्सोंमें तकसीमकी जासकती है एक 'मुश्तरका खानदानकी जायदाद' और दूसरी 'अलहदा कमाई हुई जायदाद' मुश्तरका खानदानकी जायदादके भी दो हिस्से होसकते हैं एक मौरूसी जायदाद (पैतृकसम्पत्ति ) दुसरी कोपार्सनरोंकी अलहदा जायदाद जो मुश्तरका खानदानकी जायदादमें शामिल होजाती है । इस तरहसे मुश्तरका खानदानकी जायदादमें दो किस्मकी जायदाद शामिल हैं मौरूसी और मुश्तरका खानदानमें रहने वाले कोपार्सनरोंकी दूसरी जायदाद जिसका ज़िकर दफा ४१८ से ४२३ में किया गया है मुश्तरका खानदानकी जायदादमें नहीं शामिल होगी। (२) वह सये जायदाद जिसमें मुश्तरका खानदानके सब लोग मुश्तरकन लाभ रखते हों, और मुश्तरकन् कब्ज़ा रखते हों,मुश्तरका जायदाद है अगरेज़ीमें इसे 'कोपार्सनरी प्रापरटी' कहते हैं । मुश्तरका जायदादमें बटवारा करा लेनेका अधिकार सब कोपार्सनको प्राप्त रहता है। देखोकटामानाचियर बनाम शिवगङ्ग 9 M. I. A. 5 43; 615; 2 W. R. P. O. 1 वेंकायामा गारू राजा चिल्लोकानी बनाम फेंकटरामानयम्मा ( 1902) 29 I.A. 156, 164; 25 Mad. 678; 4 Bom. L R. 657; कृष्णदास धर्मसी बनाम गङ्गाबाई (1908) 32 Bom. 479; 10 Bom. L. R. 184; और देखो श्यामनरायन बनाम कोर्ट श्राफ् वार्ड्स (1878) 20 W. R.C. R.197. . दफा ४१७ मुश्तरका जायदाद कौन कौन होती है (१) कोपार्सनरी जायदाद मुश्तरका होती है-हिन्दूलॉमें सिवाय कोपार्सनरी जायदादके दूसरी किस्मकी मुश्तरका जायदाद नहीं होती। हालैण्डमें अनेक और भिन्न भिन्न खानदानके लोग मिलकर मुश्तरका जायदाद बना लेते हैं, मगर हिन्दुस्थानमें वह मुश्तरका नहीं होती। जो मुश्तरका जायदाद हिन्दुस्थानमें होती है वह हमेशा कोपार्सनरीके हकदारों में ही होती है, किसी मर्द या औरतके बनाने से मुश्तरका जायदाद नहीं बनती । गोपी: बनाम जलधर (1910) 33 All. 41. (२) बटवाराके बाद खरीदी जायदाद-अगर कोई जायदाद परिवारके अनेक आदमियोंके नामसे खरीदकी गई हो तो वह जायदाद मुश्तरका खानदानकी होजायगी। इसका मतलब यह है कि कोई खानदान पहिले शामिल शरीक रहा हो और पीछे बटवारा होकर सब लोग अलहदा होगये हों उसके पश्चात् अगर कोई जायदाद सबके नामसे या कुछ आदमियोंके नामसे (जो अलहदा होगये थे ) खरीद करली गई हो तो वह जायदाद जितने भादमियों
SR No.032127
Book TitleHindu Law
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shukla
PublisherChandrashekhar Shukla
Publication Year
Total Pages1182
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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