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कोपार्सनरी
दफा ३६८-४०० ]
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(३) कोपार्सनरी, जायदादके आखिरी मालिकले तीन पुश्तोंमें और उसे मिलाकर चार पुश्तों में रहती है- देखो दफा ४००. ( ४ ) कोपार्सनरी, में वह लोग नहीं शामिल हैं जो मूल पुरुषसे, उसे मिलाकर या जायदादके आखिरी मालिकसे, उसे मिलाकर, पांचवीं पुश्तमें होते हैं ।
दफा ४०० आख़ीर मालिकसे तीन पीढ़ीमें कोपार्सनरी रहती है
ऊपरकी बातोंको ध्यानमें रखकर यह बात समझ लेनेके योग्य है, कि कोपार्सनरीकी हिस्सेदारी मूल पुरुषकी तीन पीढ़ी तककी सन्तानमें ही ख़तम नहीं हो जाती बल्कि जायदाद के आखिरी मालिककी तीन पीढ़ी तक होती. है । अर्थात् आखिरी मालिक के लड़के, पोते, परपोते तथा आखिरी मालिक भी शामिल रहता है, चाहे वह मूल पुरुषसे कितना भी दूर हो देखो - 10 B, H. C. R. 462, 465. इसे आसानीसे समझने के लिये एक फैसला देलो उपरोक्त नज़ीरमें जस्टिस नानाभाई हरीदासका फैसला और मोरो विश्वनाथ बनाम गनेश विठ्ठल 10 B. H. C. R. 444, 448 जस्टिस वेस्ट साहेबका फैसला विचारणीय है । जस्टिस नानाभाई हरीदासने इस तरह परं निश्चय किया -
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इस ऊपरके नक़शेमें 'अ' मूल पुरुष है और बाकी सब उसकी मर्द औलाद हैं। ( १ ) अ, पहले मर गया, उसके पीछे क, और मरे । ख, लड़का घ को और पोता च, छ, को छोड़ा और मर गया । च, छ, अपने बाप घ, से जायदादका बटवारा करा सकते हैं क्योंकि उनका मौरूसी जायदादमें बापके साथ हिस्सा हैं ।
( २ ) अब ऐसा मानो कि क, ख, पहले मर गये पीछे, अ, मरा और उसके एक परपोता घ, उस समय जिन्दा था जब अ, मरा था । अ, के मरने
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