________________
दफा ३७४]
माबालिग्री और वलायत
होनेके बाद सिर्फ तीन वर्षकी मियाद अधिक मिलेगी, जो उसे दफा ४४ के के अनुसार मिलती है। अगर बारह वर्ष वाली मियादका कुछ हिस्सा अज्ञान की अज्ञानतामें समाप्त होजाय और उसके बालिग होने के बाद तीन वर्षसे ज्यादा बानी रहे, तो उस सूरतमें जितनी मियाद बाक़ी रहेगी बालिग को मिलेगी।
उदाहरण-धरमदास नाबालिग़ है और उसका कानूनी वली मत्यदेव ने अज्ञानकी जायदादका कुछ हिस्सा १ जनवरी सन् १६०० ई० में बेच डाला उसके बाद ता० ३१ दिसम्बर सन् १९०५ ई० में धरमदास बालिग होगया। अब धरमदासको अपनी जायदाद वापिस लेनेके लिये दो मियादें मिलती हैं, एक तो दफा ४४ के अनुसार दूसरी दफा १३३, १३४ के अनुसार । धरमदास को अधिकार है कि वह १ जनवरी सन् १९१२ ई० तक नालिश करे क्योंकि उसे बालिग होनेके बाद ७ वर्षकी मिमाद नाबालिग्रीमें खतम हो जाती तो उसे दफा ४४ के अनुसार बालिग़ होनेकी तारीखसे तीन सालकी और मिलती। यह ध्यान रहे कि कानूनमें जिसकी मियाद तीन सालसे कम रखी गई है वह मियाद बालिग होनेके तारीखसे शुरू हो जायगी और अपनी अवधिपर खतम होजायगी अर्थात् दफा ४४ के अनुसार तीन सालकी मियाद नहीं मिलेगी। ..
(२) दफा ४४ का नतीजा-इस दफा ४४ में सबसे ज़रूरी बात यह है कि अज्ञान की जायदाद चाहे जिसतरहसे बेंच दीगईहो या रेहनकर कर दीगई हो या अज्ञानके स्वामित्व से हटा दीगई हो, उसके वापिस पाने का दावा वह बालिग़ होनेकी तारीखसे तीन वर्षके अन्दर करसकताहै। इस दफामें ट्रान्फर ( इन्तकाल) शब्दके साथ कोई बिशेषण नहीं लगाया गया। जैसाकि दफा १३३ और १३४ में लगाया गया है। इसी कारण से इस दफा ४४ के अनुसार हर किस्मके टासफर ( इन्तकाल)का दावा तीन सालके अन्दर हो सकता है चाहे वह ट्रांसफर बिला किसी एवज़के हो या चाहे बह ज़बानी या किसी दस्तावेज़के द्वारा किया गया हो, देखो-( 1905 ) 28 Mad. 423; (1908) 2 Iud Cas 229; ( Nagpur ).
(३) कानूनी वली और असली वली--कानूनी वली और असली वलीका भेद ऐसा है कि जो वली अदालत की तरफसे नियत किया गया हो या किसी लेख द्वारा नियत किया गया हो. वह कानूनी वलीहै। और जो वली कुदरती हो जैसे बाप या मा अथवा मुश्तरका जायदादका मेनेजर (मोहतमिम ) यह असली वली कहलाते हैं । और वह आदमी भी असली वली कहलायेगा जो किसी अधिकारके साथ अज्ञानका वली हो सकता हो अगर यह लोग वलीकी दशामें अक्षानकी जायदाद बेंचदे या रेहन करदें, या