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नाबालिगी और वलायत
[पांचवां प्रकरण
वह फरीक़ जो नाबालिराकी अमानती अवस्थामें हो, वलीकी भांति कोई काम जो नाबालिग़की जायदादके लिए साफ तौरपर फायदेमन्द हो कर सकता है । लक्ष्मीचन्द बनाम खुशालदास 18 S. L. R. 230. A. I. R. 1925 Sind 330. दफा ३५७ वली या मेनेजरका मुआहिदा
कोई वली या मेनेजर अज्ञानको ज़ाती तौरसे नहीं पाबन्द कर सकता क्योंकि उसका अधिकार सिर्फ उसी जायदाद तक महदूद है जो जज्ञानके लाभके लिये उसकी हिफाज़तमें दीगई है; वली या मेनेजर कोई स्थावर सम्पत्ति मोल लेनेके लिये अज्ञानको ज़ाती तौरपर नहीं पाबन्द कर सकता, और न अज्ञानकी जायदादको पाबन्द कर सकता है। मीरसरं वारजन बनाम फखरुद्दीन 39 Cal. 232; 39 I. A. 1; बघेलराज सानजी बनाम शेख मसल उहीन 14 I. A.89; S. C. 11Bom. 551 बनमाल सिंहजी बनाम वादीलाल 20 Bom. 61 और देखो-लाला नरायन बनाम लाला रामानुज 25 I. A. 46; S. C. 20 All. 209.
ऊपर कहे हुए बघेलराज सानजी बनाम शेख मसलउद्दीनके मुकहमें के वाकियातका खुलासा देखिये-एक वलीने जायज़ कामके लिये अशान की जायदादका एक भाग बेच डाला जो जायदाद बेची गई थी, वह धीरे धीरे उस जायदादकी कीमत बढ़ती गई, बैनामामें एक शर्त यह लिखी थी कि अगर किसी वक्त सरकार मालगुजारीका दावा करे और खरीदारका नुकसान हो जाय तो उस नुकसानको नाबालिग और उसके वारिस पूरा कर देंगे। बैनामामें यह भी लिखा था कि मालगुज़ारीका कुल बोझा उस जायदाद पर रहेगा जो बंची नहीं गई थी। खरीदारके नुकसान अदा करनेके जिम्मेटार जाती तौरपर अज्ञान और उसके वारिस होंगे। लड़केको बालिग होने पर सरकारने उस ज़मीनपर अपनी मालगुज़ारी चार्ज किया, तब बैनामाकी शर्तके अनुसार खरीदारने बालिरा लड़केपर दावा किया । प्रिवी कौन्सिलने यह फैसला किया कि कोई ज़ाती शर्त नाबालिगपर उसे बालिरा होने पर भी पाबन्द नहीं कर सकती अतएव दावा खारिज किया गया, देखो-14 I. A. 89.
ऊपर कहा हुआ मुफ़हमा मीर सरवारजन बनाम फखरुहीन का आधार इस उदाहरण पर है कि-मानो-अज, अज्ञान है और उसका वली विजय है। विजय ने, जय के साथ अजकी तरफ से मुशाहिदा (कंट्राक्ट) किया कि वह जयकी ज़िमीदारी मोल लेगा, ले नहीं सका था कि अज वालिग हो गया। अज, ने जय पर नालिश की कि वह अपनी जिमीदारी बेच दे अर्थात् उसका बैनामा अजय के हक में लिख दे। अदालत से फैसला हुआ कि दावा