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दफा ३४६-३५० ]
नाबालिगी और वलायत
मदरास प्रांतों के अन्तर गत मुश्तरका जायदाद का हर एक हिस्सेदार अपना हिस्सा बिला मंजूरी दूसरे हिस्सेदारों के, बेंच सकता है और रेहनकर सकता है ( मध्यभारत राजपूताना, संयुक्तप्रांत में नहीं कर सकता ) इसी आधार पर बम्बई और मदरास में यह माना जा चुका है कि--अविभक्त परिवार का अगर कोई आदमी शामिल शरीक जायदाद में अपना हिस्सा बेंच दें या रेहन करदे तो जायज़ है और अगर वह आदमी अपने हिस्सेसे ज्यादा हिस्सा बिला किसी क़ानूनी अधिकार के रेहन करदे या बेंचदे तो दूसरे मेम्बर उसे उतना ही मंसू करा देंगे जितना कि उसने अपने हिस्से से ज्यादा बेचा या रेहन किया है । अगर कोई बच्चा मा के पेट में हो तो उसे भी अपने हक़ के मंसूरन करा लेने का अधिकार है। ऐसी सूरत में कुल दस्तावेज़ मंसूख नहीं होगी इस विषय पर केस देखो -- श्रीपति चीना बनाम श्रीपति सुरैय्या 5 Mad. 196; मरूया बनाम रंगसामी 23 Mad. 89. जब किसी ने अपने हिस्से में शामिल दूसरे का हिस्सा बेच दिया हो या रेहन कर दिया हो तो दस्तावेज़ बैनामा या रेहननामा बिल्कुल खारिज अर्थात् रद्द नहीं हो जायगा अदालत रुपया देने वाले के पक्ष में विचार करेगी और ऐसा फैसला देगी जहां तक कि अन्य क़ानूनी सब बातों के पूरा होते हुये रुपया वसूल होजाय नीचे हम दो फैसले उदाहरण के साथ देते हैं ।
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उदाहरण - ( १ ) अमृत, कुन्द और मुकुन्द तीन भाई हैं, बम्बई में रहते हैं तथा मिताक्षरा के पाबंद हैं। अमृत खानदान का मेम्बर और मेनेजर है, उसने राम से एक हज़ार रुपया करज़ा लिया जो क़ानूनन जायज़ न था, क़रज़ा लेने के पहिले कुंद और मुकुन्द की मंजूरी न ली गई थी । कुन्द ने अमृत और राम पर बैनामा मंसूखी की नालिश की । साबित हुआ कि अमृत ने क़रज़ा खानदान की ज़रूरत बता कर लिया था तथा राम ने इस बात को ठीक समझ कर रुपया दिया था । अदालत ने फैसला किया कि रेहन नामा रद्द कर दिया जा सकता है इस शर्त पर कि जायदाद का मुनाफा तीन हिस्सों मैं बाट कर अमृत के हिस्से में जितना रुपया आवे उस में से राम को रेहन का रुपया दिया जावे और जब तक रुपया अदा न हो जाय सूद दिया जाय मगर जायदाद तीनों के क़ब्ज़े में रहेगी । देखो -- तेजपाल बनाम गङ्गा (1902) 25 All. 59.
(२) विचार करो कि अगर अमृत मर जाय तो अमृतकी सब जायदाद बाक़ी दोनों भाइयों में वरासतके अनुसार चली जायगी उस समय अदालतकी डिकरी पाबन्द नहीं हो सकेगी । और रामका रुपया डूब जायगा ऐसाही केस यह है; देखो - माधोप्रसाद बनाम मेहरबानसिंह 18 Cal. 157;
17 I. A. 193.