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दफा ३३६-३३७ ]
नाबालिसी और बलायत
( अ ) एक हिन्दू खानदान में पैदा हुई लड़की अपने मा बाप की तरफ से आठ वर्ष तक बम्बई के अमेरिकन कालेज में शिक्षा पा रही थी जहां पर es ईसाई होगई, अब उस की उमर पन्द्रह वर्ष की थी, फैसला हुआ कि वह हैसियत ईसाई के अपनी वृत्ति रखे 16 Bom. 307.
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(क) कलकत्ते का मुक़द्दमा देखो - जिसमें एक हिन्दू बाप ने ईसाई मज़हब स्वीकार कर लिया था। अब बापने ईसाई मज़हब स्वीकार किया था उसके पहले उसने अपने लड़के को चाचा के सिपुर्द कर दिया था कि उसका लड़का हिन्दू मज़हब में परवरिश पाये । ईसाई हो जाने पर उसने अपने लड़के के क़ब्ज़ा पाने के लिये अदालत से प्रार्थना की तब लड़के की उमर बारह वर्ष की थी और वह लड़का पांच वर्ष चाचा के पास रह चुका था अदालत ' ने प्रार्थना नामंजूर की और यह सिद्धान्त केस में लागू किया कि या काफी समय तक नये घर में नई आदत के साथ रहा है जिसे बचा अखत्यार कर चुका था और अगर दुनियावी मामलों के लिये उसे बाप के हवाले किया जाता तो उसे तकलीफ़ होती, देखो - मकुन्दलाल बनाम नवदीपचन्द 25 Cal. 881.
दफा ३३७ ईसाई बापका दावा लड़का दिला पानेका
एक आदमी ने ईसाई मत स्वीकार कर लिया था, उसके एक दूध पीने बाला बच्चा और एक दो वर्ष की लड़की थी, उस आदमी की औरत ईसाई मत स्वीकार करने से इनकार करके अपने दोनों बच्चों को लेकर चली गई थी, बाप ने उन बच्चों के दिला पाने और अपने क़ब्ज़े में रखनेके लिये दावा किया यह मुक़द्दमा मैसूर में दायर हुआ, जजों की राय में भेद पड़ गया और कसरतराय के अनुसार इसका फैसला किया गया। फैसला बादी के विरुद्ध हुआ यानी, अदालत ने लड़के दिलानेसे इनकार किया इस फैसले में जस्टिस कृष्ण मूर्ति साहेब ने फरमाया कि - यह मुक़द्दमा हिन्दू क़ायदे के अनुसार फैसल किया जाना चाहिये, यह सच है कि बच्चे अपने बाप के यहां परवरिश पायें और वह एक प्रकार से बाप की मिलकियत है बाप के मजहब में परवरिश पाना तथा शिक्षा पाना ज़रूरी और योग्य है, मगर जब बाप ने कोई ऐसा काम किया हो जिससे बाप क़ानूनन तमाम उन बातों के लाभ से अलहदा हो गया हो जिनसे वह उस काम के न करने से नहीं होता, तो बाप लड़के की परवरिश व शिक्षा देने के योग्य नहीं रहा। एक हिन्दू लड़का अपने दादा और परदादा के धार्मिक कृत्य करने का उतना ही ज़िम्मेदार है जितना कि वह बाप के लिये है । बेटे के खयाल से बाप तीन पुश्तों में से एक है, और तीनों पुश्ते बेटे के ऊपर बराबर अधिकार रखतीं हैं बेटे का मज़हब होना चाहिये जो बाप का मज़हब दो क्योंकि उसमें तीन पुश्त के पितरों का हक़ शामिल
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