________________
दफा ३३४-३३५ ]
नाबालिगी और बलायत
अपनी पत्नीका कुदरती बली है । स्त्री चाहे कितनी भी कम उमर की हो, पति अपने पास रखने के लिए मजबूर कर सकता है, यदि कोई रवाज इसके विरुद्ध न हो । पति यदि स्वयं अज्ञान हो तो भी वह अपनी स्त्रीका वली है; देखो - अरुमुगा मुदाली बनाम वीरराधन ( 1900 ) 24 Mad. 225.
३५१
अगर पति अपनी अज्ञान स्त्रीको छोड़कर मर जाय तो उस नाबालिग विधवाका वली पति के सम्बंधियों में कोई होगा, जो सपिण्डका दर्जा रखता हो । विधवाका बाप और उसके रिश्तेदार सपिण्ड पुरुषकी मौजूदगीमें वली नहीं बन सकेंगे; देखो - खुदीराम बनाम बनवारीलाल 16 Cal. 584.
नाबालिग स्त्रीकी संरक्षा - पतिको अधिकार है कि अपनी पत्नीको अपनी संरक्षामें रक्खे, जब तक कि उसके विरुद्ध कोई मान्य कारण न हो पत्नीका नाबालिग होना, अदालतके लिये उसे पतिकी संरक्षा में न देने का पर्याप्त कारण है, यदि उसके माता पिता न मर गये हों और पतिकी ओरसे यह विश्वास न दिलाया गया हो, कि पत्नीके बालिग होने तक पति उसके साथ सहवास न करेगा। आमतौर से हिन्दू समाजका यह रवाज है कि पत्नी ब्याहके पश्चात् रजस्वला होने तक पिताके घर रक्खी जाती है ।
जज कोया जी - गार्जियन और वार्डस् एक्ट द्वारा पतिके अधिकार का प्रतिपादन होता है जिसको नाबालिग़की शारीरिक रक्षाके क़ानूनके अनुसार अपनी नाबालिग : पत्नीका वली बननेका अधिकार है । नवनीतलाल बनाम पुरुषोत्तम 50 Bom. 268; 28 Bom. L. R.143; 94 I. C. 11; A. I. R. 1926 Bom. 228.
दफा ३३५ मा शादी करनेसे, बाप दत्तक देनेसे वली नहीं
रहते हैं
अगर किसी लड़के की मां वली हो और माने अपनी शादी करली हो तो, वह अज्ञानकी वलायतसे खारिज करदी जायगी । इसी तरहपर जब किसी अज्ञान लड़केका बली बाप हो और बापने उस लड़केको दत्तक दे दिया हो तो, वह वलायतसे खारिज कर दिया जायगा । इस बातमें कोई सन्देह नहीं है कि हर एक वली चाहे जिस तरहपर नियत किया गया हो काफी वजेह पर वलायत से अलहदा किया जा सकता है; देखो - वाईशिवा बनाम रतन जी 24 Bom. 89; पंचप्पा बनाम संगंबासबा 1 Bom. L. R. 543.
मिस्टर मुल्लाकी राय इस बारेमें विरुद्ध है, उनका कहना है कि हिन्दू विधवा जो लड़कोंकी वली हो दूसरी शादी करने की वजहसे अपने वलीके अधिकारको नहीं खोदेगी; देखो - मुल्ला हिन्दूलॉ सेकण्ड एडीशन पेज ४१५ दफा ४३५, नजीर देखो - गङ्गा बनाम झालो (1911) 34 Cal. 862; पुतला