________________
नाबालिगी और वलायत
पांचवां प्रकरण
Coc
दफा ३२२ मियादमें मत भेद है।
नाबालिग्री अर्थात् अज्ञानता कब समाप्त हो जाती हैं, इस विषय में हिन्दू लॉ के लिखने वालों की राय में भेंद पड़ गया है। किसी की राय यह है कि अज्ञानता पन्द्रह साल के समाप्त होने पर ख़तम हो जाती है, और किसी की राय सोलह साल समाप्त होनेपर है । बङ्गालमें अज्ञानताकी मियाद सोलह साल समाप्त होने पर ख़तम हो जाती है देखो माथुर मोहन बनाम सुरन्द्रो (1875 ) 1 Cal. 108
बङ्गाल प्रांत को छोड़ कर तमाम भारत में अज्ञानता की मियाद की समाप्ती पन्द्रह साल की उमर खतम होने पर मानी जाती है देखो शिवजी नाम दत्तू ( 1874 ) 12 Bom H. C. 281, 209, रिद्धी बनाम कृष्णा ( 1886 ) 9 Mad. 391,397, 398
इन्डियन मेजारिटी एक्ट ६ सन् १८७५ ई० के पास होजानेसे अज्ञानता की अवधि के विषय में जो झगड़े थे सब मिट गये क्योंकि यह क़ानून तमाम हिन्दुस्तान में लागू किया गया तथा सब आदमियों और सब कामों के लिये एकसां पाबन्द कर दिया गया।
दफा ३२३ नाबालिग्री की मियाद
एक्ट नं० है सन १८७५ ई० के अनुसार आज कल यह माना जाता है कि जिस नाबालिग की जात ( शरीर ) या जायदाद के लिये अदालतसे वली नियत किया गया हो, या आइन्दा नियत किया जाय या जो नाबालिग कोर्ट आफ वार्ड के ताबे में हो तो नाबालिगी की मुद्दत इक्कीस वर्ष समाप्त होने पर खतम हो जायगी । बाक़ी और तमाम सूरतों में अट्ठारह साल समाप्त होने पर खतम हो जायगी देखो ख़्वाहिश बनाम सुरजू 3 All 698; रड़ी बनाम कृष्णा 9 Mad. 391.
जब कोई वली अदालत से नियत हो चुका हो तो अज्ञानता की मियाद इक्कीस वर्ष समाप्त होने तकही रहेगी, चाहे वली अपना काम करता हो या न करता हो और चाहे उसने साटीफिकेट वलायत हासिल की हो यान कीहो देखो -- रुद्रप्रकाश बनाम भोलानाथ मुकुरजी 12Cal.612; गिरीशचन्द्र
44