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दफा ३२१ ]
अग्रवाल वैश्यों की उत्पत्ति
स्थान में पाये जाते हैं। ये लोग पहिले, पहल दिल्ली से आकर यहां बसे । इसी ज़िले के कर्वीत परगने में भी कुछ ऐसे अग्रवाल निवास करते हैं ।
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यह पहले ही कहा जा चुका है, कि काशी धाम में अग्रवालोंके चौधरी अथवा मुखिया बाबू हरिश्चन्द्र जी रहते हैं । आग्रह में शहाबुद्दीन गोरी द्वारा अनेक अग्रवालों के मारेजाने पर उनकी जो स्त्रियां सती हो गयीं थीं उनकी पूजा अब तक अग्रवाल काशी में करते हैं । इनमें से दो महिलाएं उक्त बाबू साहब के निकटवर्ती पूर्वजों की पत्नियां थीं। उनकी मूर्तियां बनाकर अग्रवाल अब पूजन करते हैं। अपना प्रथम निवास अग्रह छोड़ने पर इस परिवार ने बहुत समय तक दिल्ली के पास लखनौती नामक एक गांव में कई वर्ष तक किया। पर जब तक औरंगजेब के पुत्र बहादुर शाहका राज्य नहीं हुआ, तब तक इस घराने के कोई आदमी सरकारी कामों में अच्छे पदों पर आरूढ़ नहीं हो सके । बहादुर शाह ने अग्रवालों को बड़े आदर और नीति की दृष्टि से देखा तथा उनको अपनी राज्य में अच्छे २ स्थान दिये । कतिपय अग्रवालों को राजा की उपाधियां भी मिलीं । अग्रवालों की वर्तमान सन्तान से १३ पीढ़ियां यदि हम पीछे देखते हैं तब पता लगता है कि इनके पूर्वज “बालकृष्ण" थे उनके एक पुत्र मुरसिदावाद के नव्वाब की सेवामें राजदूत बनाकर भेजे गये थे । उक्त नव्वाब साहेब इनपर अन्त में ऐसे प्रसन्न हुये कि उन्हे पुरस्कार स्वरूप में राजमहल के अंतगर्त एक बड़ी मिलकियत दी। जिसके कुछ अंश पर इस घराने का अधिकार चला आता है । एकसौ वर्ष बीते कि काशी के राजा श्रीमान् बलवन्तसिंह के समय में उक्त घराने के एक आदमी ने बनारस के महान प्रतिष्ठित महाजन साहु रामचन्द्र की कन्यासे विवाह कर लिया । मरते वक्त साहु रामचन्द्र अपनी सम्पत्ति अपने जामाता अनुचन्द के नाम लिख गये जिनके अनेक कन्याओं के सिवाय दो भाई और १० पुत्र थे एक भाई ने तो फक़ीर या योगी होकर भागलपुर में मठ बना लिया जो अभी तक मौजूद है । उस समय से इस परिवार की सन्तानों के भाग्य में समय की गति से हेर फेर होता ही चला गया अब इस घराने में बाबू हरिश्चन्द्र और उनके भाई बच गये हैं। देखो --
मि० ए० ह्यूम साहेब की सेन्ससेज़ रिपोर्ट सन् १८६५ ई० तथा एपेन्डिक्स बी० पी० सन् १८८६ ई० । यह पुस्तक मुझे बम्बई हाईकोर्ट की लाइब्रेरी में मिली थी ।