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दफा ३१८-३२०] दत्तक सम्बन्धी नालिशोंकी मियादें ३३७ जब उसको जायदाद पर क़बज़ा पाने का हक़ पैदा हो फौरन् दावीदार होना चाहिये। दफा ३१९ दत्तक पुत्र अपनी दत्तक जायज़ करार दिये जाने
की नालिश कब कर सकता है दत्तक पुत्र अपना हक़ साफ़ कर लेने की नालिश कर सकता है जब उसके अधिकारों में किसीके नाजायज़ दखल देनेकी वजहसे उसको नुकसान पैदा हो। उस वक्त दत्तक पुत्र अदालतमें अपने दत्तक पुत्रकी हैसियतसे दत्तक साबित करापानेका दावा दायरकर सकता है । यह दावा क़ानून मियाद की दफा ११६ एक्ट नम्बर ६ सन् १६०८ ई० के अनुसार दायर किया जायगा इस दफा का सारांश यह है कि " दत्तक जायज़ है इस बात के करार दिये जाने का दावा ६ सालकी मियादके अंदर होना चाहिये, और यह मियाद उस वक्त से शुरू की जायगी जबकि दत्तक पुत्र के हकों में जो उसके दत्तक लिये जाने से पैदा हुये हों नुकसान पहुंचा हो"
इलाहाबाद और कलकत्ता, हाईकोर्ट की राय-हाईकोर्ट इलाहाबाद और कलकत्ता ने इस दफा का यह अर्थ माना है कि इस दफा के अनस
नुसार कब्ज़ा पाने की नालिश नहीं दायर की जा सकती। वल्कि यह ज़रूर है कि ज़ाहिरा ऐसा दावा दत्तक क़रार देने का किया गया मगर अंदरसे उसे क़ब्ज़ा पाने का भी फैसला होगया, देखो-लाली बनाम मुरलीधर 24 All. 195 चंदनिया बनाम सालिगराम 26 All. 40. जगन्नाथ प्रसाद बनाम रञ्जीतसिंह 24 Cal 354. दफा ३२० लिमीटेशन एक्ट नं. ९ सन् १९०८ ई०को दफा
११९ का मतलब "इस बातके करार दिये जानेके वास्ते कि दत्तक जायज़ है, इस किस्म की नालिश की मियाद ६ साल की है और यह मियाद उस वक्त से शुरू होगी जब दत्तक पुत्र के दत्तक सम्बन्धी अधिकारों में दखल दिया गया हो" दफा ११६ का शब्दार्थ ऊपर बताया गया नीचे विस्तारसे देखो
यह दफा वहांपर लागू होगी जहां पर कि दत्तक जायज़ मानने से इनकार किया जाता हो या जिन रसमों के होने से दत्तक जायज़ होता है उन रसमों का न किया जाना बयान किया जाता हो।
यह ११६ दफा वहां पर लागू पड़ेगी जहां पर दो बातें कही जाती हों एक तो यह कि दशक हुआ और दूसरी यह कि जायज़ तौर से हुआ। जब यह दोनों बातें साथ साथ बयान की जायेंगी तब उस दत्तक जायज़ करार
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