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दफा ३१६]
दत्तक सम्बन्धी नालिशोंकी मियाद
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नासिंह वनाम गुलाबसिंह 17 All. 167. प्रभूलाल बनाम मिलनी 14 Cal. 401 रामचन्द्र मुखरजी वनाम रणजीतसिंह 27 Cal. 242.
बंबई हाईकोर्ट ने इसके विरुद्ध कुछ फैसले किये हैं, देखो-फेनीअम्मा बनाम मन्जया 21 Bom. 159 दूसरा मुकद्दमा देखो 24 Bom. 260, 266 रामचन्द्र बनाम नारायण 27 Bom. 614, उपरोक्त 24 Bom. 260 में हाई कोर्टने यह माना है कि दफा ११८ क़ानून मियाद एक्ट नं० १५ सन् १८७७ ई० ऐसी नालिशों से सम्बन्ध रखती है जिनमें दत्तक का प्रश्न अत्यावश्यक हो और ऐसा प्रश्न बादी की तरफ से अथवा प्रतिबादी के जवाब दावा के आधार पर उठाहो । तथा दफा १४१ का मंशा यह है कि जिन मुकदमों में दत्तक की बहस ज़रूरी न हो और वादी अपना दावा, दत्तक नाजायज़ बयान न करके भी साबित कर सकता हो ।
ऊपर कही हुई ६ साल की मियाद के बारे में ठीक समझ लेनेके लिये हम दफा ११८ का जानने योग्य विवरण नीचे देते हैं। दफा ३१६ लिमीटेशन ऐक्ट नं. ९ सन १९०८ ई. की दफा
११८ का वर्णन इस बात के करार दिये जाने के वास्ते कि जो दत्तक ज़ाहिर की गई है नाजायज़ है, या दर असल वह दत्तक ही नहीं हुई थी ऐसी नालिश करने की मियाद ६ साल की है और यह मियाद उस वक्तसे शुरु होगी जब वयान की जाने वाली दत्तक का हाल बादी को मालूम हो । दफा का शब्दार्थ इतना है अब आप देखिये कि इन शब्दों का अर्थ कैसा लगाया गया है--
जहां पर नालिश जायदाद के क़बज़ा पाने के लिये कीगई है वहां पर अगर दावा के मज़बूत करने के लिये दत्तक का नाजायज़ करार दिया जाना ज़रूरी हो तो यह ११८ दफा लागू नहीं होगी।
(१) जस्टिस तैय्यवजी की राय-जस्टिस तैय्यब जी ने करार दिया है कि यह दफा उन सब नालिशों के लिये जरूरी होगी, जहां कि बहस का खास हिस्सा प्रतिवादी के दत्तक के जायज़ या नाजायज़ होने के बारे में हो । चाहे वह प्रश्न पहले पहल बादी की तरफ से उठाया गया हो, या प्रतिवादी ने अपने जवाबमें उठाया हो ।
(२) कलकत्ता हाईकोर्ट की राय-कलकत्ता हाईकोर्ट ने यह निश्चत किया है कि यह ११८ दफा गैर मनकूला (स्थावर सम्पत्ति) जायदाद के कब्ज़ा पाने की नालिश के लिये ज़रूरी नहीं होगी चाहे वादी को दत्तक नाजायज़ साबित करना ज़रूरी हो देखो-राम बनाम रंजीत 27 Cal 242.