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व्याख्या और उपयोगी नज़ीरों सहित छापकर लगा दिया गया। अन्य कानूनों के अलावा हिन्दूलॉ पर एक्ट नं०१२ सन् १६२८ ई० तथा एक्ट नं०२सन् १९२६ ई० ने बहुत बड़ा असर डाला है। जिसके द्वारा मिताक्षराला में भारी परि. घर्तन उसके उत्तराधिकारमें होगया नये ४ वारिस (लड़केकी लड़की, लड़की की लड़की, बहन और बहनका पुत्र ) अनिवार्य रूपसे मान लिये गये, इन सब व अन्य कानूनोंको विस्तृत व्याख्या सहित हमने इस ग्रन्थमें स्थान दिया है। हमें आपसे यह कहते हर्ष होता है कि हिन्दूलॉका यह एडीशन पहलेसे बहुत अधिक लाभकारी सिद्ध होगा।
मुझे एक बात अवश्य कहना है कि इसके तैय्यार होते समय तक आधे से अधिक मांगें आ चुकी हैं। अब हमारे पास आधेसे कम रह गया है इसलिये यदि आप अपना कुछ भी हित इसके द्वारा समझते हों तो अति शीघ्र मंगाले वरना आपको बहुत दिनों तक ठहरना होगा। जल्द न छप सकेगा क्योंकि इससे भी बड़े कानून छपना प्रारम्भ होगया है और बिना उनके पूरा किये दूसरे छप नहीं सकेंगे। - इस कानूनके तैय्यार होने में जिन सजनोंने मुझे बम्बई में सहायता दी थी, यद्यपि उनको प्रथमावृत्तिमें मैंने धन्यवाद दिया था किन्तु जब जब मुझे उन सज्जनोंका स्मरण आ जाता है तो मेरा हृदय प्रेमसे भर आता है। उन्होंने जो मेरे साथ प्रेमका बर्ताव किया है उसकी स्मृति ताज़ी हो जाती है। मैं सबसे पहले श्रीमान वै० धर्मरत्न सेठ खेमराज श्रीकृष्णदासजी को धन्यबाद देता हूं कि जिन्होंने इस ग्रन्थके लिखने के समय मेरे उत्साहको बढ़ाया, कठि. नताके समय प्रोत्साहन दिया, दूसरे मैं अपने परम मित्र निरभिमानी विद्वान वै० पं० चन्दूलाल जी महताका कृतज्ञ हूं जिनकी कृपासे मुझे प्रूफ देखने आदि में सहायता मिली और इसी प्रकार कानूनके सुविख्यात विद्वान और ग्रन्थकार श्रीयुत पं० पद्मनाभ भास्कर शिंगणे व हिन्दूला के सुप्रसिद्ध ग्रन्थकार श्रीयुत पं० जगन्नाथ रघुनाथ घारपुरे एडवोकेट महानुभावोंका मैं आभारी हूं जिन्होंने मुझे हिन्दूलॉ के जटिल प्रश्नोंको पढ़ाया और समझाया जिसके कारण हम इस ग्रन्थको लिखने में समर्थ हुये।
इस आवृत्तिमें प्रूफरीडर नये थे इसलिये अधिक सम्भव है कि अशुद्धियां रह गई हों उसके लिये पाठक यह जानकर क्षमा करें कि इतने बड़े ग्रन्थ में ऐसा हो जाना असम्भव नहीं है । अन्तमें हमें यही कहना है कि यदि हिन्दू समाजका कोई मी लाभ हमारे इस कामसे हुआ तो हम अपने परिश्रम को, सफल समझेंगे।
विनीतचन्द्रशेखर शुक्ल