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दत्तक लेने का फल क्या है
दफा २७५ - २७७ ]
महीं हुआ था इसलिये जिसके वह गोद लिया जाता है यह माना जाता है कि वह असली लड़केका स्थानापन्न है । दत्तकका सम्बन्ध दत्तक लेनेवाले पिताकी हैसियत से, दत्तकके असली खानदान वालोंके साथ होता है मगर खूमका सम्बन्ध नहीं टूटता इसी सबब से दत्तकपुत्र न तो अपनी शादी उस खानदान से कर सकता है और न गोद ले सकता है जिस हालत में कि वह गोद दिये जानेके पहिलेभी नहीं कर सकता था । इस विषयको विस्तार के साथ पहिले कह चुके हैं देखो; दफा १३८; १३६.
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दफा २७७ दत्तक पुत्रको असली कुटुम्बकी जायदाद में कब हिस्सा मिलेगा
दत्तकपुत्रको अपने असली खानदानमें उस जायदादका हिस्सा मिलेगा, जो गोद लेनेवाले पिताको किसी तरह से पहुँचती थी, मगर दत्तक सिर्फ उतना ही हिस्सा पायेगा ज्यादा नहीं जितना कि, उसके दत्तक पिताको मिलता। और देखो इस किताब की दफा २६३.
असली बाप का हक़, अधिकारों के परिवर्तनका -- सुद्दईने नालिश किया कि वह अमुक व्यक्ति का दत्तक पुत्र है जिसने अपनी स्त्री के हक़ में एक हिबा - मामा कर दिया है जोकि नाजायज़ है । मुद्दईकी नाबालिगी की अवस्था में, मुद्दई के कुदरती पिता ने बहैसियत नावालिग के वली के इसी प्रकार की नालिश की थी किन्तु अदालत की इजाज़त से समझौता हो गया, जिसके अनुसार मुद्दई को एक मकान और कुछ ज़मीनात मिली थी और बाक़ी जायदाद से उसने अपना अधिकार त्याग दिया था । मौजूदा नालिशमें मुद्दई ने वली पर असावधानी का दोष इस बिना पर आरोपित किया है कि वह हिवः नामे को नाजायज़ साबित करनेमें असफल रहा है जिसे कि वह इस कारणपर कि हिबानामे में धोखा दिया गया है क्योंकि रजिस्टरी में लिखी हुई जायदाद में, कुछ ज़मीन ऐसी भी शामिल कर दी गई है जोकि उसके गोद लेने वाले पिता की नहीं है । और बेईमानी से उसकी रजिस्ट्री करा ली गई है । उसने यह भी अभियोग लगाया है कि उसके गोद लिये जाने के पश्चात् उसके कुदरती पिता को पूर्व नालिश में बतौर वली के कार्यवाही करने और समझौता करने का अधिकार न था ।
तय हुआ कि (१) समझौते के समय अर्थात् सन् १९०८ई० में यह क़ानूनी समझा जाता था कि कोई रजिस्ट्री इस कारण से नाजायज़ न हो सकती थी कि उस में वर्णित जायदाद का कोई भाग रजिस्ट्री के न्यायाधिकार की सीमा के अन्दर न थी वली इस प्रकार की दलील न पेश करने या क़ानून के परिवर्तन को पहिले ही से न जान सकने के कारण असावधानी का अभियोगी नहीं हो