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दत्तक या गोद
[ चौथा प्रकरण
और शाइके इजलासमें पेश हुई, दोनों पक्षों की मार्केकी बहस सुनकर जस्टिस शाहने जोकुछ कहा उसका सार यह था कि - इस मुक़द्दमेमें महादेव और उस का भाई शम्भाजी बटे हुये खानदान में थे, महादेवको मरे हुए२० वर्षसे ज्यादा होका, महादेव के मरने के बाद रामचन्द्र ग्वालियर में एक खानदान में चला गया इस मुक़द्दमेमें जो जायदाद विवादास्पद है वह महादेवकी छोड़ी हुई है और उसका वारिस सिर्फ रामचन्द्र था । दत्तक देने के बाद पार्वती बाईने सन् १९०६ ई० में पतिकी जायदाद दत्तात्रेयके पास रेहन कर दी । अब मुख्य प्रश्न यह है कि दत्तक पुत्र रामचन्द्र जब दूसरे खानदानमें गोद चला गया तो उसका हक़ उस जायदाद पर रहा या नहीं ? दत्तक देनेके बाद रामचन्द्रकी जायदादकी मालकिन उसकी माता पार्वतीबाई हुई क्योंकि हिन्दूलों का सिद्धांत है कि जब लड़का गोद दिया जाता है तो उसकी सिवि - लडेथ, यानी क़ानूनी मृत्यु असली पिताके स्नानदान में होजाती है और उसका पुनर्जन्म गोद लेने वाले के खानदानमें होता है यही बात मनु अध्याय ६ श्लोक १४२ में स्पष्ट की गई है तथा सेक्रेडवुक्स आफ दी ईस्ट पेज ३५५ देखो, जस्टिस शाहने कहा कि - इस मुक़द्दमेमें कोई कठिन बात नहीं है सब तरह से यही नतीजा निकलता है कि दत्तक देनेसे दत्तक पुत्रकी असली बापके खानदानमें क़ानूनी मृत्यु होगई इससे जायदाद भी असली खानदानके नज़arat वारिस को चली जायगी न कि वह जायदाद दत्तक पुत्रके साथ दूसरे खानदानमें जावे पार्वतीबाईको अधिकार प्राप्त था । अपील डिकरी हुआ अदालत मातहतका फैसला मन्सूख और मुक़द्दमा वापिस भेजा गया । यही मुक़द्दमा 40 I. L. R. Bom. P. 429 में भी दिया गया है ।
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पैतृक सम्पत्ति के पूर्णधिकारी का गोद लिया जाना-कुदरती परिवार की जायदाद उसी के वारिसों को मिलती है पिताके वारिसों को नहीं ।
जब कोई ऐसा व्यक्ति जो अपनी पैतृक सम्पत्ति का सम्पूर्ण अधिकारी होता है, गोद लिया जाता है तो हिन्दूलॉ के अनुसार, कुदरती परिवार की सम्पत्ति उसके ही वारिसों को मिलती है उसके पिता के वारिसों को नहीं क्योंकि वह उस जायदाद का अस्तिम पुरुष उत्तराधिकारी होता है-मानिक भाई बनाम गोकुलदास 49 Bom. 520; 27 Bom. L. R. 414; 87 1. C. 816, A. I. R. 1925 Bom. 363.
नोट - इसके पहले जो मुकद्दमें हुये हैं उनमें यह सिद्धांत नहीं माना गया था मदरास लॉ जरनल में इसके बिरुद्ध नोट दिया गया है यह फैसला बम्बई का है दूसरे हाईकोटों में इसका पूरा असर नहीं पड़सकता दत्तक पुत्रकी क़ानूनी मृत्यु असली खानदान में पूर्ण रूप से नहीं होती क्योंकि वह उसमें बिबाह नहीं कर सकता इत्यादि । यह कैसा पूर्णरूप से ठीक नहीं समझा जाता ।