________________
૨૭૬
दत्तक या गोद
[ चौथा प्रकरण
की तरह बर्ताव करते रहे--४२ वर्ष के बाद यह अभियोग लगाया गया कि दत्तक की कार्यवाही पतिकी इच्छा के खिलाफ थी -: - प्रमाण का भार मुद्दई पर रहा-तय हुआ कि दत्तक जायज़ है - श्री कांचुमारथी वेकंट सीतारामचन्द्र cia anna sigarcat ; 89 I. C.817; A.. I. R. 1925 P. C. 201.
दफा २५४ दत्तक पुत्र को अपने असली ख़ानदानमें लौटने की रुकावटें
जबकि दत्तक पुत्र अपने असली खानदानसे दूसरे खानदान में चला गया हो अथवा ऐसा दत्तक हो जो क़ानूनन असली खानदानसे खारिज न किया गया हो, और किसी सबबसे उसे अपने असली खानदानमें लौटना पड़े, तो उसे क़ानूनी रुकावटें पैदा हो जाती हैं। मुमकिन है उसको क़ानून मियादसे रुकावट पड़ जाय जिसके सबबसे वह असली खानदानमें जानेसे रोकाजाय या उसकी हालत जो बदलचुकी है उसके सबबसे असली खानदानमें जानेकी रुकावट पैदा हो जाय जो हालत कि उसकी असली खानदानमें होने की दशामें होती वह नहीं रही । राजेन्द्रोनाथ बनाम जोगेन्द्रनाथ 14 M. I. A 77; S. C. 15 Suth (P. C.) 41; S. C. 7 Bom. L. R. 216.
दफा २५५ दत्तक साबित होजाने का फैसला सबको पाबंद करेगा
यह बात तय हो गई है कि जब कोई मुक़द्दमा दत्तकका अदालतमें चल रहा हो और उसका फैसला दत्तकके पक्षमें होजाय अर्थात् कोर्ट से दत्तक साबित होजाय तो वह फैसला न सिर्फ उन्हीं दोनों पक्षकारोंके साथ लागू होगा जो दत्तकके मुक़द्दमेमें वादी या प्रतिवादीकी हैसियत से सम्बन्ध रखते थे, बक्लि उन सब लोगोंसे लागू होगा जो उस मुक़द्दमेके पक्षकार नहीं थे, यानी उस फैसलेका असर उन सबको पाबन्द करेगा जो उस केसमे शामिल न थे । इस क़िस्मका फैसला खानदान व बिरादरी वग़ैरासे भी लागू किया जायगा । अदालतसे जब गोद साबित होने का फ़ैसला आखिरी होजाय तो खानदान या बिरादरी का कोई आदमी उस फैसलेकी पाबन्दी से इन्कार नहीं कर सकता, हमेशा के लिये वह फैसला इस बातका हो जायगा कि जो दत्तक ली गई थी जायज़ थी । और जब एक दफा ऐसा फैसला अदालतसे होजाय तो दुबारा दावा नहीं हो सकता देखो; सिविल प्रोसीजर एक्ट नं० ५ सन् १६०८ ई० की दफा ११ । नज़ीरें देखो; सीताराम बनाम जगबन्धू 2 Suth. 168 फैसला न मानने वालेपर बार सुबूत पड़ेगा - किस्टोमनी बनाम कलक्टर आफ मुरशिदाबाद S. D. 1859, 550; राजक्रिस्टो बनाम किशोरी 3 Suth 14 यरकल अम्मा बनाम अनाकला 2 Mad. H. C. 276; गोपालायान बनाम रघुपति एय्यन 3 Mad. H. C. 217.