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दत्तक या गोद
[चौथा प्रकरण wwwwwwwwwwwww.mmmmmmmmm
धर्मायत्वा गृह्णामि संतत्यैत्वा गृह्णामि
देवस्यत्वा सवितुः प्रस वे श्विनो र्बाहुभ्याम्पूष्णो हस्ताभ्यां प्रति प्रति गृह्णामि । (गोद लेने वाला, नीचे के मन्त्रको पढ़कर बालक का मस्तक सूंघे) ।
ॐ अङ्गा दङ्गात्सम्भवसि हृदयादधि जायसे। अात्मावै पुत्र नामासि सजीव शरदः शतम् । इति
विधि-ततोयुवासुवासेतिमन्त्रणवालकायवत्रंपरिघाय उष्णीषं बद्धाकुण्डलादिभिरलंकृत्यकुंकुंमादिनातिलकंकृत्वा प्रावरणेनसंष्टय धृतच्छत्रं गीतवाद्यनृत्यमङ्गलपुरःसरंब्राह्मणैः स्वस्तिनइन्द्रेति सुमङ्गलसूक्तं पठेत् । पुरंध्रीभिर्नीराजयेत् ।
__ युवासुवास' नीचे लिखा मन्त्र पढ़कर पुत्रको सुन्दर वक्त, पगड़ी, कुण्डल आदि आभूषण पहनाये केसरका तिलक लगाये उत्तरीय वस्त्र (उपरना -दुपट्टा ). छत्र धारण करे । नृत्य, गीत, वाद्य एवं मङ्गलमय अन्य कृत्य करे । ब्राह्मण लोग वेदके 'स्वस्ति वादन' आदि कल्याण प्रद मन्त्रोंका गान करें। स्त्रियां मङ्गल गान करती हुयी नीरांजन करें।
नोट-प्राचीन कालमें यह चालथी कि गोद लेने वाला, पुत्र देने वाले के घर जाकर पुत्र मांगता था और वहां से उक्त प्रकार अपने घर लौट कर यज्ञादि कर्म करता था किंतु अब प्रायः ऐसा नहीं होता । दोनों एकही जगह पर दत्तक विधि पूरा करते है इसलिये प्राचीन पृथाकी सब कृत्य उसी जगह पर पूरी कर दी जाती है। (आभूषण पहनाने का मन्त्र) कृत्य-ॐ युवा सुवासः परिवीत अागात् सुश्रेयान भवति
तंधीरासः कवय उन्नयन्ति स्वाध्यायो मनसा देवयन्तः। - विधि-ततोगृहीता हस्तौपादौप्रक्षाल्यअग्नःपश्चिमतः शुभासनेप्राङ्मुख उपविश्यस्वदक्षिणतःपत्नींचोपवेश्यपत्ल्युसंगेवालं चोपवेश्याचम्य प्राणानायम्यदेशकालौस्मृत्वा 'दत्तकविधानाहङ्गवनंकरिष्ये' इति संकल्प्य कुशकण्डिका कुर्यात् तत्र प्राचार्योऽग्नेर्दक्षिणतःपरिस्तरण भूमित्यक्त्वा ब्रह्मणेश्रासनंदत्वाब्रह्माणंवृणुयात् ।