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दफा २४१-२४३ ] दत्तक सम्बन्धी आवश्यक धर्म कृत्य क्या है ?
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(३) S. C. 26 में कहा गया है कि बनियोंमें दत्तक हवन और पुत्रष्टी की ज़रूरत नहीं है।
(४) जैनियों में गोद लेने के लिये किसी रसम की ज़रूरत नहीं है 8 Cal. 319. दफा २४२ मदरास प्रांतमें ब्राह्मणोंके दत्तकमें हवन ज़रूरा नहीं है
(१) मदरासके एक मुक़द्दमे में यह बात साफ तय पाई है कि वहांपर ब्राह्मणोंके गोद लेने में दत्तक हवनकी ज़रूरत नहीं है सिर्फ पुत्रका देना और लेना ज़रूरी है। इस मुकदमे में स्पष्ट सिद्ध करदिया गया है कि मदरास प्रांत में अगर ब्राह्मणों के दत्तक लेने के समय हवनकी रसम न की गई हो तो वह दत्तक सिर्फ इस बात से नाजायज़ नहीं होगा देखो; सिनम्गा बनाम बेंकट चालू 4 Mad. H. C. 165; 1 Stra. H. L. 96; जगन्नाथ की भी राय है 3 Dig. 244-248.
(२) क्षत्रिय-नीचेके मुक़हमेसे यह मालूम होता है कि क्षत्रियोंमें भी उस प्रांतमें दत्तक हवनकी रसम ज़रूरी नहीं है इस मुक़द्दमेमें वही कायदा लागू किया गया जो ऊपरके ब्राह्मणोंसे लागू किया गया था देखो, चन्द्रमल बनाम मुक्कामल 6 Mad, 20 नम्बोदरी ब्राह्मणोंकी नज़ीर देखो, शङ्करन बनाम केशवान 15 Mad. 7.
(३) ब्राह्मणों के एक मुक़द्दमेमें यह माना गया कि दत्तककी सब रसमें (हवन आदि ) पहले हो चुकी थीं मगर लड़केके देने और लेनेकी रसम पांच वर्ष के पश्चात् की गई ऐसा मालूम होता है कि दत्तक देने और लेने वालेके दरमियान तय हुआ था कि बाज़ाब्ता दत्तक विधान आगे किया जायगा, इस दत्तकको अदालतने जायज़माना चेकट बनाम सुभद्रा 7 Mad. 548, सव्वार ऐय्यर बनाम सव्वामल 21 497.
दूसरा मुक़द्दमा ऐसा था कि जिसमें एक ब्राह्मण पुरुषने अपने गोत्रका लड़का गोद लिया था मगर दत्तक होमकी रसम नहीं की थी अदालतने गोदे को जायज़ माना देखो; गोबिन्द ऐय्यर बनाम दोरासामी 11 Mad. 5. दफा २४३ सूतक या दूसरी अशुद्धतामें दत्तक
जन्म या मरणके सूतकमें, अथवा दूसरी तरहकी अशुद्धताके अन्दर यदि कोई दत्तक लियागया हो तो वह महज़ इस वजेहसे नाजायज़ नहीं होगा मगर शर्त यह है कि दोनों पक्षोंका गोत्र एकही हो, एसी दशामें दत्तक हवन जरूरी नहीं है-देखो, 14 Mad. L. J. 340; 27 Mad. 538; 11 Mad. 5: 24 B. 218; 5 Mad. 358 परन्तु थोड़ा विरुद्ध भी देखो 15 W. R: 300;" B. L. R: 1.
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