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दफा १६०]
साधारण नियम
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उसका दान इस प्रकार है कि जैसे किसी आदमीके एकही आंख हो और फूट जाय तो वह अन्धा हो जावेगा मतलब यह है कि एकलौते पुत्रका दान नहीं करना चाहिये।
दत्तक चन्द्रिका और विज्ञानेश्वरने भी यही माना है। अनेक पुत्रोंमें कौन पुत्र गोद दिया जाय और कौन लिया जाय ? मनु जी कहते हैं कि
जेष्ठेन जातमात्रेण पुत्री भवति मानवः पितृणामनृणश्चैव स तस्मात्सर्वमर्हति । ९-१०६
सिर्फ पैदा होनेहीसे संस्कार रहित भी जेठे पुत्रसे मनुष्य पुत्रवान् हो जाता है और पितरोंके कर्जेसे छूट जाता है इसलिये जेठापुत्रही सबधन पाने के योग्य है । इसीसे जेठे पुत्रको गोद न देवे यह वंश चलानेके लिये और धर्म कृत्य करने के लिये प्रधान पुत्र है।
पहलेके मुकदमों में यह दोनों बातें हिन्दूला में भी मानी गई थीं यानी एकलौता पुत्र और जेठा पुत्र न तो गोद दिया जासकता था और न लिया जा सकता था। देखो जानकी बनाम गोपाल 2 I. L. R. Cal. 366; काशीबाई बनाम तांतिया 7 Bom. I. L. R. 221; 7 Bom. I. L. R. 225; मि० माण्डलीक मयूखकी टीकामें कहते हैं कि एकलौते पुत्र और जेठे पुत्रके दत्तक देने या लेने के बारेमें वेदोंके समयसे लेकर आजतक कोई साफ मनाही नहीं पाई जाती हां ऐसा करने में देनेवाला और लेनेवाला पातकी होता है।
हैवतराव बनाम गोविंदराव 2 Bom. 75 वाले मामलेमें बापने अपने दोनों लड़कोंको गोद दे दिया था और दो ही पुत्र उसके थे । हाईकोर्टने कहा कि एकलौते बेटे और जेठे बेटेके दत्तक देनेका अपराध असली बापके ऊपर है लेनेवालेके ऊपर नहीं और जब ऐसा दत्तक हो चुका हो तो जायज़ है। इसी किस्मके अनेक मुकदमे बम्बई और मद्रास हाईकोर्टमें हुए तथा प्रिवी. कौंसिलतक गये सबोंमें मुख्यतः दो वचनोंपर विचार किया था।
नेक पुत्रेण कर्तव्यं पुत्रदान कदाचन । बहु पुत्रेण कर्तव्यं पुत्रदानं प्रयत्नतः । शौनक नत्वेकं पुत्रं दद्यात् प्रतिग्रहीयादा । वसिष्ठः
प्रिधीकौंसिलने 'कर्तव्य' और 'दद्यात्' इन पदोंपर बड़ा विचार किया अन्तमें कहा कि-शौनक यह कहते हैं कि एक पुत्र गोद न लेना चाहिये वसिष्ठ कहते हैं कि न देना चाहिये 'न देना चाहिये' कहनेसे यह मतलब नहीं है कि अगर ऐसा पुम दत्तक दे दिया गयाहो तो नाजायज़ है बक्ति यह मत