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दत्तक या मोद
[चौथा प्रकरण
पुत्र सजातीय होवे । सजातीय न होनेपर चाहे वह कितनाही. योग्य हो. गोद लेनेके अयोग्य है।
ऊपरके वचनोंसे यह नतीजा निकलता है कि पहले समान गोत्र सपिण्ड में लड़का गोद लेना चाहिये जैसे सहोदर भाईका लड़का समान गोत्र सपिंड होता है यदि ऐसा न हो तो अपने गोत्रके थोड़े पुरुषोंके अन्तरका लड़का । उसके न होने में अपने गोत्रका लड़का हो चाहे अधिक पुरुषोंके अन्तरका हो, ऐसा भी न होनेपर गोत्रका कोई भी लड़का हो । यदि गोत्रमें भी न हो तो, असमान गोत्र सपिण्डका हो यानी नानाके गोत्रका सपिण्ड हो यदि ऐसा सपिण्ड न हो तो अपने गोत्रज भाइयोंके नज़दीकी सपिण्डका कोई लड़का झे ऐसा लड़का पिण्डोंका सपिण्ड कहलाता है यदि ऐसा न हो तो भाइयों के दूरवर्ती सगोत्रीका हो, इन सबोंके न होनेपर असमान गोत्र असपिण्डका हो यानी नानाके गोत्रमें असपिण्डका हो ।
नोट-सपिण्ड के लिये देखो दफा५८२-५८७ और समानोंदक के लिये दफा ५.८५८९ अमालती फैसलों के अनुसार माना गया है कि लड़का अपनी जाति का हो देखो दफा १७४ तथा यह भी माना गया हैं कि किसी द्विजातियामें यदि कोई स्वाज खास तौरसे साबित नहीं की जाती हो तो अपने गोत्रहीमें लड़का गोद लेना उचित है वहीं जायज़ होगा। दफा १७६. सहोदर भाईका लङका गोद लेनमें श्रेष्ठ है
(१) धर्मशास्त्रों में माना गया है कि जहां तकहो सके लड़का नज़दीकी कुटुम्बीका गोद लेना चाहिये जो अन्य सव बातोंसे भी योग्य हो सगे भाईका बेटा सबसे नज़दीकी होता है।
दत्तक मीमांसा-सन्निहित सगोत्र सपिण्डेषु च भातृपुत्र एव पुत्री कार्यः। अभ्युपगतश्चतदिज्ञानेश्वराचार्यैरपि भातृपुत्रस्य श्रेष्ठत्वम् तस्मात् भातृ पुत्र एव पुत्री कार्यः अत्र सहोदरप्रातृपुत्रएव पुत्री कार्यः इत्याह मनुः-'भ्रातृणामेक जातानामेकश्वेत् पुत्रवान् भवेत् । सर्वेते तेन पुत्रेण पुत्रिणो मनुस्खवीत् । पुत्रवान् भवेत् । एक जातानामित्यनेनैकैन पित्रा एकस्यां मातरि जातानामेव ग्रहीतृत्वं न भिन्नोदरणां भिन्नपितृकाणां वेति । एक भातृ प्रभवत्वेन भ्रात पुत्र एव पुत्री कार्यः। यत्त बृहस्पतिना ययेक जाता बहवो भातरस्तु
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