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दफा १५८-१६३ ]
कौन लोग दसक देनेका अधिकार रखते हैं
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दफा १६० अज्ञान
अज्ञान ( नाबालिरा) दत्तक लेनेका अधिकार दे सकता है; देखो--1 Cal. 289; 25 W. R 235; 3 I. A. 72.
1 Cal. 289 ( P C.) में कहा गया कि रेगूलेशन नं० १० सन् १७६३ ही दफा ३३ और रेगूलेशन नं० २६ सन् १७६३ की दफा २ के अनुसार कोई भी ज़िमींदार या ताल्लुकेदार जिसकी उमर १८ वर्षसे कम हो, और जो कोर्ट आव वार्डस्के ताबे हो, बिना इजाज़त कोर्ट श्राव् वार्डस्के दत्तक नहीं ले सकता; और जो ऋज्ञान कोर्ट आव वार्डस् के ताबे न हो और उसे समझदारी आगई हो वह दत्तक लेनेका अधिकार दे सकता है । द्विवेलियन हिन्दू फैमिली लॉ पेज १३७ में कहा गया है कि नाबालिग बाप अपने पुत्रका गोद नहीं दे सकता; क्योंकि वह वसीयत नहीं कर सकता है और वली भी मुकर्रर नहीं कर सकता। इसका मतलब यों समझिये कि जो आदमी दत्तक देता हो उसकी उमर ऐसी होना ज़रूरी है कि उसे समझदारी आ गई हो; यह ज़रूरी नहीं है कि वह बालिग ही हो, और जिस समय दत्तक दिया गया हो उस समय देने वाले का दिमाग दुरुस्त हो देखो-19 Cal. 452; 19 I. A. 101-106. दफा १६१ ब्रह्मसमाजी _जो हिन्दू ब्रह्मममाजी होगया हो वह अपने पुत्रको दत्तक दे सकता है। देखो-7 Cal. W. N. 784; कुसुमकुमारी बनाम सत्यरंजन 30 Cal. 999. दफा १६२ हिन्दू राजपूत
हिन्दू राजपूतोंसे साधारण हिन्दूला लागू होता है, मगर यदि कोई ईसाई या मुसलमान होगया हो, अर्थात् अपना मज़हब बदल दिया हो. तो इससे कानूनी मौत नहीं होजायगी, क्योंकि बापको वली होनेका अधिकार बना रहता है। इसलिये मज़हब बदलने पर भी बापको अपने पुत्रके दत्तक देनेका अधिकार बना रहता है--3 Bom. L. R. 89; 25 Bom. 561 इन नज़ीरोंमें यह भी कहा गया है कि जब बापने मज़हब बदल दिया हो तो वह अपनादत्तक देनेका अधिकार और दत्तक हवन करनेका अधिकार दूसरेको दे सकता है। दफा १६३ पुनर्विवाहिता माता
एक मुकद्दमेमें माताने अपनीदूसरी शादी करनेके पश्चात् पहले पतिसे पैदा हुए पुत्रको दत्तक दिया । बम्बई हाईकोर्टने माना कि माताको ऐसा अधिकार था; देखो-पुतलाबाई बनाम महादू 33 Bom. 107; 1 Indian Cases. 659.