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दत्तक या गोद
[चौथा प्रकरण
थी कि उसकी तामील की जाय, क्योंकि भवानीके मरनेपर उसकी विधवा उत्तराधिकारिणी होगई थी, । इस बातपर यह वहस की गई कि गुरुकिशोरने कोई मियाद नियत नहीं की थी, कि अमुक समय तक विधवा इस अधिकार को अपने काममें लासकती है इसलिये उसका अधिकार बिला हहके था। इसके जवाबमें अदालसने कहा कि कोई हद ज़सर होना चाहिये। अगर भवानी कोई असली लड़का या दत्तकपुत्र छोड़कर मरता और वह लड़का दूसरा लड़का छोड़कर मर जाता और चन्द्रापलीकी ज़िन्दगीमें वह बालिग होजाता, तो चन्द्रावलीका गोद लेनेका इरादा इस तरहका होता कि, सिलसिलेवार कोई वारिसके मरने के बाद आखिरी गोद लेने वालेके परदादाके लिये गोद किया जाय । चाहे उसका कुछ भी इरादा हो मगर क्या कानून ऐसा करनेकी आज्ञा देता है ? हम ऐसा ख्याल करते हैं कि अदालत मातहतकी राय थी कि अगर भवानी कोई बेटा छोड़ जाता या, यह कि लड़का न छोड़ने की दशामें भवानीकी विधवा योग्य रीतिसे कानूनी अधिकारके अनुसार अपने पतिके लिये कोई लड़कागोद लेलेती तो जो चन्द्रावलीको गोद लेनेका अधिकार दिया गया था उसका नाश होजाता। परन्त यह जानना बहुत कठिन है कि कौनसी बातें इसके परिणामके लिये नियत की जासकती हैं जो हमारे सामनेके मुक्तइमेसे एकही तरहपर न हों। फिर यही प्रश्न भुवनमयी और चन्द्रावलीके मरनेपर पैदा हुआ । रामकिशोर उस जायदादपर काबिज़ होगया जो गुरुकिशोर और भवानीने छोड़ी थी। तब एक दूसरे नज़दीकी वारिस रिश्तेदारने रामकिशोरपर उस कुल जायदादके दिला पानेका दावा किया। इस मुकदमे में कहा गया कि रामकिशोरका दत्तक नाजायज़ है। हाईकोर्ट बङ्गालने दावा डिसमिस किया; देखो-पद्मकुमारी बनाम जगतकिशोर 5 Ch). 615. इस मुक़दमेके फैसलेमें प्रिथी कौंसिलकी तजवीज़के असरको जो पहिले हो चुकी श्री महदूद करदिया गया जिस तजवीज़में फैसला हो चुका था कि रामकिशोर मुद्दईको उस जायदादके पानेका कोई हक नहीं है जिसका दावा रामकिशोरने भुवनमयीपर किया था। मगर बङ्गाल हाईकोर्टका यह फैसला भी जुडीशल कमेटीने मन्सूख कर दिया, देखो-पद्मकुमारी बनाम कोर्ट आफ घाईस 8 I. A. 229. आखिरी नतीजा यह निकाला गया कि-भवानीको जायदादमें हक्क पैदा होनेसे अधिकारकी समाप्ति होगई जो चन्द्रावलीको मिला था, या यह कि दत्तकका अधिकार पुत्रकी मौजूदगीमें दिया ही नहीं जासकता था, इसलिये वह तामीलके योग्य नहीं रहा । ऊपरके दोनों मुकद्दमों का विचार फिर मदरास हाईकोर्ट के निम्नलिखित मुकदमों में करने की ज़रूरत हुई
थयामल बनाम घेकटराम 14 I. A. 67; S.C. 10 Mad. 205; तथा ताराचरण बनाम सुरेशचन्द्र 16 I. A. 166; S. C. 17 Cal. 122. इस मुक्त