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दफा ११८]
विधवाका गोद लेना
विभक्त परिवारमें बिला शिरकत किसीके जायदादकी वारिस हो, वह अपने पतिके लिये बिना आज्ञा पतिके और बिला रज़ामन्दी सपिण्डोंके चाहे वह नज़दीकी भी हों, तथा हाकिमके, गोद ले सकती है विधवाके इस अधिकारमें प्रिवी कौंसिलकी उस तजवीज़ से ज्यादा मदद मिली है; जो रामनाद( दफा १४३ पैरा २) के मुक़द्दमे में की गई थी, यानी उसमें कहा गया था कि विधवाने मज़हबी रसूमात पूरा करनेके बाद योग्यरीतिसे दत्तक लिया, और किसी अनुचित स्वभावसे गोद नहीं लिया तथा रिश्वत देकर भी यह गोद नहीं लियागया; देखो -रुकमाबाई बनाम राधाबाई 5. Bom. H. C. (A.C. J.) 181; भगवानदास बनाम राजमल 10 Bom. H. C. 257; गिरीओबा बनाम घुमान 6 Boin.492; दिनकर सीताराम बनाम राजमल 10 Bom. HC 257; रामजी बनाम घुमान 6 Bom. 498; दिनकर सीताराम बनाम गनेशशिवराम । Bom. 505; गिरीओवा बनाम भीमाजी 9 Bom. 58; रिश्वत देनेका बार सुबूत उस पक्षपर निर्भर है जो दिया जाना बयान करता हो। देखो-पटैल बृंदावन जैकिशुन बनाम मनीलाल 15 Bom. 566.
शास्त्रियोंकी व्यवस्थाएं -बनारस स्कूल का विस्तार प्रथम प्रकरणमें बताया जाचुका है देखो दफा २५ मिताक्षरा का वह अर्थ जो बनारस स्कूलमें माना गया है उसके अनुसार विधवा बिना पतिकी आशाके गोद नहीं ले सकती। राजपूतानेमें यही स्कूल प्रचलित है । श्रीमान सेठ खेमराज श्रीकृष्णदास मालिक श्री वेङ्कटेश्वर प्रेस बम्बई का मुकदमा ( देखो दफा २५) बिल्कुल इसी आशय का था जिसमें साबित हुआ कि मारवाड़ देश में बनारस का धर्म शास्त्र मिताक्षरा प्रचलित है और इसलिये वहां पर बिना आशा पतिके विधवा गोद नहीं ले सकती। विरुद्धपक्ष कहताथा कि ऐसी रवाज नहीं है। उक्त सेठजी की तरफ़ से इस विषयमें प्रमुख साक्षियों के अतिरिक्त काशी के सुप्रख्यात महामहोपाध्याय श्री शिवकुमार शर्म मिश्र शास्त्री आदि की भी गवाहियां हुयीं सबने मारवाड़ देशमें बनारस स्कूल का माना जाना सिद्ध किया। माननीय श्रीशिवकुमार आदि शास्त्रियों की व्यवस्थाएं जो इस सम्बन्धमें उस समय दी गई थी हम ज्यों की त्यों नीचे देते हैं। व्यवस्था संस्कृत भाषामें हैं, तथा असली कापी सब शास्त्रियों के हस्ताक्षरित इस ग्रन्थके लेखक के पास मौजूद है। व्यवस्था की असली कापी अदालत में पेश करके साबित कराई जा सकती है । इस व्यवस्थापत्र पर हस्ताक्षर करने वाले शास्त्रियों में से बहुतेरों का स्वर्गवास हो गया है और कुछ उनमें से इस समय मौजूद हैं। स्वर्गबासी शास्त्रियों के हस्ताक्षर जीवित शास्त्रियों द्वारा प्रमाणित किये जासकते हैं यदि दैववशात्, आवश्यकता के समय सबका बैकुण्ठवास होगयाहो तो भी अन्य साक्षियों से साबित हो सकती है। इस व्यवस्था के देने का दूसरा मललब यह भी है कि विधवा के दत्तक सम्बन्धमें जितने आवश्यक