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दफा ६६]
दत्तक लेनेके साधारण नियम
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दफा ९६ पुत्र या दत्तक पुत्रकी आज्ञासे दूसरा दत्तक लेना
ऊपर यह बताया गया कि, 'अपुत्री, पुरुष दत्तक ले सकता है। परन्तु इस बातके विरुद्ध नन्द पंडितने वेदकी एक घटनापर आधार मानकर विवाद किया है। वह कहते हैं कि दत्तक असली लड़के की मौजूदगीमें भी लिया जासकता है। मगर शर्त यह है कि दत्तक लेनेकी मंजूरी और आज्ञा उस पुत्र से ले ली गई हो। अगर पुत्र दत्तक की प्राज्ञा न दे तो नहीं लिया जासकता । देखो दत्तक मीमांसा--
यत्तुविश्वामित्रादीनां पुत्रवतामपि देवतामपि देवराता. दि पुत्रपरिग्रहः लिंगदर्शनं तदपुत्रणैवेत्यादि श्रुति विरोधात्, स्वजाघनी भक्षणादिवन्नश्रुत्यनुमापकः। नचस्माताश्रुतिः श्रौतस्य लिंगस्य नवाधिकेति वाच्यम् नापुत्रस्य लोकोऽस्ति, इत्यादि प्रत्यक्ष श्रुत्युपष्ठम्भन तस्या एव बलवत्वात् । अथापि स्मार्तश्रुतितः श्रीतलिंग बलवत्व एव । श्रीमतामाग्रहाति शयश्चेत् तर्हि (पुत्रानुज्ञाया पुत्रवतोप्युस्तु पुत्रान्तर परिग्रहाधिकारः ) यन्नः पिता सञ्जानीते तस्मिंस्तिष्ठामहेवयम् । पुरस्तात् सर्वे कुर्महेत्वामन्वञ्चोवयं स्मााति श्रीतलिंगात् ।
भावार्थ--वेदमें 'शुन शेफ, की एक बात लिखी है। विश्वामित्रादिकों के पुत्रवान् होनेपर भी उन्होंने देवरातसे पुत्र गोद लिया, यद्यपि विश्वामित्र के सौ पुत्र मौजूद थे। प्रश्न यह है कि वचन तो ऐसा है कि जिसके पुत्र न हो वह गोद ले इसलिये विरोध पड़ता है । उत्तरमें कहा गया है कि जैसे अन्नके दुर्भिक्ष में क्षुधात विश्वामित्रने कुत्तेकीटांगका मांस भक्षण किया तो इससे कोई नियम नहीं हो सकता एवं मन्वादि स्मृतियां श्रुतिकी बाधक नहीं हो सकतीं। अगर बहुतही आवश्यकता हो तो पुत्रकी मंजूरी और उसकी आज्ञासे पितागोद ले सकता है। यह बात इसलिये मानी गई कि वेदमें एक वाक्य यह है कि अपने पिताकी जो इच्छा हो उसीका अनुगामी पुत्रको होना चाहिये । और देखो-सरकार लॉ आव एडाप्शन पेज १८०-१८१, यही