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पुत्र और पुत्रत्व
[तीसरा प्रकरण
को मालूम हुआ हो या न हुआ हो, विवाह संस्कार के बाद पुत्र पैदा करे, तो वह पुत्र उसके पतिका सहोदज पुत्र होगा और अपनी माता के पतिकी जायदादका उत्ताधिकारी होगा। विष्णु, वसिष्ठ, नारद, वीर मित्रोदय, आदिने भी यही कहा है । नन्द पंडितने भी ऐसाही माना है। दफा ८५ कृत्रिमपत्र
पुत्रिकापुत्र और कानीन पुत्रोंके अलावा कृत्रिम, दत्तक; और क्षेत्रज पुत्रोंके ऊपर भी दृष्टि डालना आवश्यक जान पड़ता है। कृत्रिमपुत्र--वसिष्ठने नहीं माना, किन्तु याज्ञवल्क्य, विष्णु, बौधायनने माना है । कृत्रिमपुत्रका समावेश अपविद्ध पुत्रके अंतर्मत होजाता है । मर्नु ने कहा है-"गुण दोषके विचार करनेमें चतुर पुरुष गुणयुक्त अपनी जातिके बालकको जब अपना पुत्र बना लेता है तब उसको कृत्रिम पुत्र कहते हैं । याज्ञवल्क्यके टीका मिताक्षा में कहा है, कि जिसको पुत्रके अभिलाषी मनुष्यने धन और क्षेत्र प्रादिके लोभ को दिखाकर स्वयं पुत्र करलिया हो, वह कृत्रिम पुत्र है । बौधायनने कृत्रिम पुत्रका एकही जातिका होना स्वीकार किया है। और देखो इस किताब दफा ३०५-३.१२. दफा ८६ दत्तकपुत्र ...अपनी जाति में माता पिता का दिया हुआ पुत्र दत्तकपुत्र कहलाता है। हम इस विषयमें आगे प्रकरण चारमें विस्तार से कहेंगे। यहां पर केवल यह समझनेके योग्य है, कि कृत्रिम और दत्तकमें क्या अन्तर है । मातापिता द्वारा (१) कानीनः पंचमः । या पितृगृहेऽसंस्कृताकामात्दुत्पादयेत् मातामहस्य पुत्रोभवतीत्याहुः । अथाप्युदाहरंति-- अप्रत्ता दुहिता यस्य पुत्रं विन्दत तुल्यतः। पुत्रो माता महस्तेन दद्यापिण्ड हरेद्धनम् । वसिष्ठ अ० १७१२२ से २६ १२) सदृशं तु प्रकुर्य्याचं गुणदोष विचक्षणम् । पुत्रं पुत्रगुणौर्युक्त सविज्ञेयश्चकृत्रिमः।मनु१६६ ( ३ )क्रीतश्वताभ्यां विक्रीतः कृत्रिमः स्यात्स्वयं कृतः। याज्ञवल्क्य २ अ० १३५ (४) सदृशं यं सकामं स्वयं कुर्यात्स कृत्रिमः। बौधायन २प्रश्न २ अ०२५