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दफा ८२]
पुत्र और पुत्रोंके दरजे
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दफा ८२ चौदह प्रकार के पुत्र और उनकी तारीफ
पहले ज़माने में स्मृतिकारोंने बारह प्रकारके पुत्र स्वीकार किये हैं। उनमें किसी २ के मतसे 'कुण्ड, और 'गोलक, मिलाकर चौदह क्रिस्मके पुत्र होते हैं। परन्तु विशेष रूपसे बारह प्रकारके पुत्रों का ही ज़िकर पाया जाता है। जैसे-औरस, क्षेत्रज, पुत्रिकापुत्र, कानीन, गूढज, पौनर्भव, सहोढज, निषाद, (पारशव ) दत्तक, क्रीत , अपविद्ध, स्वयंदत्त ।
(१)ौरस पुत्र-योग्य विवाह संस्कारसे युक्त भार्या में पतिके सम्बन्ध से जो लड़का पैदा होता है, उसे औरस कहते हैं । यही श्रेष्ट और मुख्य पुत्र है।
(२) क्षेत्रजपुत्र-मरे हुये पुरुषकी, नपुंसक अथवा असाध्य रोगी मनुष्य की स्त्री धर्मपूर्वक नियुक्त होकर दूसरे पुरुषके वीर्यसे जो लड़का पैदा होता है, उसे क्षेत्रज कहते हैं।
(३) पुत्रिकापुत्र--जब कोई पुरुष अपनी कन्याको, जिसके भाई न हो, आभूषणोंसे युक्त करके इस शर्तपर बर को देता है, कि इस कन्यासे जो पुत्र पैदा होगा, वह मेरा होगा, तब उस कन्याको "पुत्रिका, कहते हैं और उससे जो पुत्र पैदा होता है उसे 'पुत्रिकापुत्र, कहते हैं।
- (४) कानीन पुत्र-जब किसी लड़कीके विवाह होनेके पहले कुमारी अवस्थामें गुप्त सहवाससे पिताके घरमें पुत्र उत्पन्न होता है, उसे कानीनपुत्र कहते हैं और यह पुत्र उस लड़कीसे विवाह करनेवालेका होता है। और अगर विवाह न हो तो उसके बाप का होता है।
(१) स्वक्षेत्रे संस्कृतायांतु स्वयमुत्पादयेद्धियम् । तमोरसं विजानीया पुत्रं प्रथम कल्पितम् । मनु अ०६-१६६. (२) यस्तल्पजः प्रमीतस्य क्लीवस्य व्याधितस्यवा। स्वधर्मेण नियुक्तायां स पुत्रः क्षेत्रजः स्मृतः । मनु 8-१६७. (३) अभ्रातृकां प्रदास्यामि तुभ्यंकन्यामलंकृताम् । अस्यां यो जायते पुत्रः समेपुत्रोभवेदिति । वसिष्ठ १७०१८. (४) पितृवेश्यनि कन्यातु यं पुत्रं जनयद्रहः ।तंकानीनंवदेनाम्ना वोढः कन्या समुद्भवम् । मनु ६-१७२.