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विवाह
[दूसरा प्रकरण
न होना चाहिये । इसलिये मेरी राय है कि मुसलमान इस बिल के प्रयोग से मुक्त किये जायं। श्री ठाकुरदास
मेरी समझ में ऐसा नियम बनाना न्याय सङ्गत नहीं है कि विवाह में भाग लेने वाले व्यक्ति के ऊपर इस बात के सिद्ध करने का भार डाल दिया जावे कि वह न जानता था कि यह विवाह बालविवाह है। इस बात को सिद्ध करने का भार अभियोग चलाने वाले पर होना चाहिये । मैं इस नियम से भी सहमत नहीं हूँ कि मातापिता या संरक्षक इस बात को सिद्ध करे कि उसने अपने पुत्र, पुत्री या वार्ड के बाल विवाह को रोकने में असावधानी नहीं की।
दूसरी बात यह है कि ज़मानत देने के नियम से भी मैं सहमत होने के लिये प्रस्तुत नहीं हूँ। . इसके अतिरिक्त मैं एक ऐसे नियम बनाये जाने के पक्ष में हूँ कि जिसके अनुसार विवाहों की रजिष्ट्री हो जाया करे। श्री नीलकण्ठ दास
मैं निम्न लिखित विचारों के साथ कमेटी की रिपोर्ट से सहमत हूँ दिल्ली सेलेक्ट कमेटी की रिपोर्ट आने के पश्चात् बिल दुबारा दूसरों वे विचार जानने के लिये प्रकाशित किया गया था। मैंने स्वयं प्रतिनिधि संस्थाओं से आई हुई सम्मतियों को ध्यान पूर्वक देखा है तथा कमेटी दक्षिणी भारत के कट्टर लोगों के विचारों को मी दूसरे ढंग से मालूम किया है। इस बात से इन्कार नहीं किया जासक्ता कि हम लोगों में कुछ ऐसे प्रभावशाली जनसमुदाय हैं जो इस एक्टको कार्यान्वित होने में बाधायें उपस्थित करेंगे जिनके कारण बहुतों को कठिन दुःख उठाना पड़ेगा। बहुतों को अपना धन्धा खो बैठने का भय है तथा बहुतों की जीविका द्वार बन्द हो जावेगा । उदाहरण स्वरूप पुजारियों को ही समझ लीजिये । इन बातों की इस कारण और मी अधिक सम्भावना है क्योंकि हमारी जाति के नेतागण विवाह व गृहस्थी से कोई सम्बन्ध नहीं रखते हैं।
मैं एक एसे नियम का बना दिया जाना भी उचित समझता हूँ जिस से कि वह व्यक्ति दोषी ठहराया जावे जो इस एक्ट के अनुसार विवाह करने पालों का किसी प्रकार से वहिष्कार किये जाने का प्रयत्न करे । खासकर वह व्यक्तिगत ऐसे मामलों में अवश्य दोषी ठहराया जावे जिसका गृहस्थ जीवन नहीं है। परन्तु सम्भव है कि वर्तमान अवस्था में इस प्रकार का नियम उचित न हो। ऐसे भी अवसर आवेगे,जबकि कोई निर्धन मनुष्य