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विवाह
[दूसरा प्रकरण
वलायत से बाहर निकालने आदि कामों में भाग लिया, वे कानून ताजीरात हिन्दके अनुसार अभियुक्त होंगे; देखो-महारानी विक्टोरिया बनाम गुरदास राजघंशी 4 W. B. 7 फौजदारी; संम्राट बनाम प्राणकृष्ण शर्मा 8 Cal. 969.
दफा ७४ नियोग
देखो इस किताबकी दफा ८७, ८८, २८२, २८३ और देखो धर्मशास्त्र संग्रह पेज २२० दफा ७५ स्त्री किसके कब्जे में रहेगी ?
ज़ाहिरा तौरसे माना गया है कि पति अपनी स्त्रीका वली है और वह विवाहके समय से ही अपनी स्त्रीको अपने घरमें रहने के लिये मजबूर करने का अधिकार रखता है । स्त्री चाहे कितनी भी छोटी उमर की हो उसको अपने पतिकेघरमें ही रहना होगा । अगर कोई रवाज इसके विरुद्ध हो तो दूसरी बात है। धरणीधर घोषका मामला देखो-17 Cal.298 असमुगामुदाली बनाम बीर राघव मुदाली 24 Mad. 225.
- मनु कहते हैं कि जब स्त्रीकी उमर नाबालिग हो तो भी पति बल प्रयोग करके उसे अपने पास रखे। अगर स्त्री बालिग हो और पतिके पास रहनेसे इनकार करे तो पतिकी प्रार्थना पर अदालत स्त्रीको सिर्फ यह हुक्म देगी कि वह पति के पास रहे, मगर उसे मजबूर नहीं कर सकती । अर्थात् पति ऐसा मुकद्दमा दायर नहीं कर सकता कि उसकी स्त्री ज़बरदस्ती अदालतसे उसके कब्जे में दिला दी जाय--जमुनाबाई बनाम नारायण मोरेश्वर पेंड से 1 Bom. 164.
नोट-पतिको जब अदालतसे ऐसा हुक्म मिल जायगा कि उसकी स्त्री उसके पास रहे, तो पति अपनी स्त्री को जबरदस्ती ले जा सकेगा मगर अदालत के किसी आफीसर के द्वारा अगर वह चाहे कि उसकी स्त्री पकड़कर उसके कब्जे में दी जावे ऐसा नहीं हो सकता । जो लोग पति के ऐसे काम में बाधा देंगे वह फौजदारी के कानून से अभियुक्त होंगे, मगर पति भी ऐसा कोई काम नहीं कर सकता जो सभ्य समाज के नियमों के अथवा कानून की सीमाके बाहर हो । पति नावालिग होने पर भी अपनी नावालिग स्त्री को अपन पास रहने के लिये मजबूर कर सकता है । क्यों नहीं अदाअत का अफर स्त्री को पकड़ कर पतिक हवाले करता ? इस सवाल का मुख्य उत्तर यह है कि हिन्दू कौमकी स्त्री, पुरुष का आधा शरीर माना गयी है और स्त्री को दूसरे किसी पुरुष का स्पर्श, दोष माना जाता है। देखो व्यास रमृति अ० २ श्लोक १२, १३ ऐसी दशा में यदि स्त्री पतिसे बलवान हो तो कठिनता होगी। पति स्वयं अपनी स्त्री को बलपूर्वक ससुराल या अन्य जगद से ला सकता है।