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विवाह
[दूसरा प्रकरण
दानके सब कोपार्सनर होंगे (कोपार्सनर देखो दफा ४३०) क्योंकि वह क़र्ज़ खानदानके मतलब और उसके लाभके लिये लिया गया है। देखो-सदराबाई बनाम शिवनारायण 32 Bom. 81; 9 Bom. L. R. 1366; इसी तरहपर जैराम नाथू बनाम नाथू श्यामजी 34 Bom 54 में यह माना गया कि छोटे भाई का विवाह करनाभी ज़रूरी कामों में दाखिल है। इलाहाबाद हाईकोर्टने बहनके व्याहके विषयमें भी वही बात मानी; देखो--नन्दनप्रसाद बनाम अजोध्याप्रसाद 7 Ail. L. J. 236 (फुलबेञ्च ) हालमें इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह माना कि बापके दूसरे विवाहके लिये दुलहिनके बापको रुपया देनेके उद्देशसे जो क़र्ज़ लिया गया, वह भी खानदानी ज़रूरी काम है और इस लिये लड़के उस क़र्ज़के देनदार हैं; देखो--भागीरथी बनाम जोखूराम 7 All. L. J. 667. इस भागीरथीवाले मुकदमेंमें अदालतने कहा कि प्रत्येक पुनर्विवाह कानूनी ज़रूरी कामोंमें दाखिल नहीं है लेकिन जबकि पिताकी उमर लगभग २८ वर्षके हो, पुत्र लगभग ६ वर्षका हो और स्त्री मर जाय तो पिताका फिर विवाह करना ज़रूरी कानूनी ज़रूरियातमें दाखिल है। मदरास हाईकोर्ट भी धीरे धीरे ऐसेही सिद्धांत मानने लगी है; देखो19 Mad.L.J.666 वाले मामले में हाईकोर्टने यह सिद्धांत माना कि 'हिन्दूके लिये बिवाह परम कर्तव्य है' ब्राह्मणोंके सिवा शूद्रों के लिये भी माना। इस मामलेमें सौतेली मा अपने पतिकी जायदादकी वारिस हुई थी, अदालतने माना कि उसकी सौतेली कन्याका विवाह करना उसका कर्तव्य है 9 Mad. L. T. 158 वाले मुकदमे में मदरास हाईकोर्टने यह भी माना कि, पतिकी जायदादका एक टुकड़ा जो विधवाने कन्याके विवाहके खर्च के लिये बेचा था ज़रूरी काम था।
जहां पर कोई हिन्दू खानदान मिताक्षरालाके अधिपत्यमें रहता हो तो खानदानकी जायदाद, खानदानके लड़कोंके विवाहके खर्चकी पाबंद है; यानी उस जायदादमेंसे विवाहका खर्च किया जाय; देखो-32 Bom. 81; 12 All 575; 37 Mad. 273; 27 Mad. 206; ( 1911) 34 Mad. 4223; लड़कियोंके विवाहके लिये भी पाबंद है 23 Mad. 612, 26 Mad. 497; ३5 Mad. 728. दफा ७२ कन्याकी वलायत
__ कन्याकी वलायतके दो भाग हैं। एक तो विवाहके पहले, दूसरा विवाहके पश्चात्। विवाहके पहले कन्याका वली ( देखो दफा ३२४ ; ३३४) विवाहके पश्चात् उसका वती पति है चाहे पति नाबालिग भी हो । नाबालिग दुलहन का वली नाबालिग दुलहा होता है. (दफा ३३२) अगर कहीं पर ऐसी खास रसम हो कि अपनी स्वीके बालन होनेपर पति उसका वली माना