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दफा ६५-६६ ]
वैवाहिक सम्बन्ध
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दफा ६५ विवाहमें सौतेली माताका सम्बन्ध
कोई हिन्दू अपनी सौतेली माताके भाई की लड़कीके साथ तथा उस लड़कीकी लड़कीके साथ विवाह नहीं कर सकताः देखो उद्वाहत्तत्व पं० रघुनन्दन कृत Vol. II P. 66; बनर्जी हिन्दू लॉ 2 ed. 60. सौतेली मांका रिश्ता भी वैसाही माना जायगा जैसा कि असली माताका । दफा ६६ धर्म शास्त्रोंका वर और कन्याके सम्बन्ध में विचार
(१) हिन्दू धर्म शास्त्रानुसार विवाहमें वर कैसा होना चाहिये तथा कैसा नहीं होना चाहिये, किस नियमकी पाबन्दी करना चाहिये, एवं घरका क्या धर्म है इन विषयोंपर विचार, देखो-व्यास अ० २ श्लो० १२, १३:
पाटितोयं बिजाः पूर्वमेकदाहः स्वयंभुवा पतयोर्द्धन चार्द्धन पत्न्योऽभुवन्निति श्रुतिः । यावन विन्दते जाया तावद्दों भवेत्पुमान
ध्यास कहते हैं कि वेदमें लिखा है कि पूर्व कालमें ब्रह्मा ने एक शरीर के दो भाग करके आधे को पुरुष और आधे कोस्त्री बनाया, इसलिये पुरुष जबतक अपना विवाह नहीं करता है तब तक वह आधाही रहता है । मनु कहते हैं कि--
गुरुणानुमतःस्नात्वा समावृत्तो यथा विधि उदहेत दिजो भार्यां सवर्णा लक्षणान्विताम् । ३-४ महान्यपि समृद्धानि गोजाविधन धान्यतः स्त्री सम्बन्धे दशैतानि कुलानि परिवर्जयेत् । ३-६ हीनक्रियं निष्पुरुषं निश्छन्दो रोमशार्शसम्। क्षय्यामयाव्यपस्मारि वित्रि कुष्ठि कुलानि च । ३-७ नोव्हेत्कपिलां कन्यां नाधिकाङ्गी नरोगिणीम् ना लोमिकांनातिलोमांन वाचाटाम्न पिङ्गलाम् ।३-८