________________
विवाह
_ [दूसरा प्रकरण
मदरास हाईकोर्टने कहा कि अगर जातिकी रवाज हो और पति-पत्नी ने आपसमें एक दूसरेको तलाक दे दिया हो तो सभ्य समाजके व्यवहार के विरुद्ध नहीं है देखो-17 Mad. 479. दफा ६२ पुरुषका पुनर्विवाह
हिन्दूलॉ के अनुसार हिन्दू पुरुष पहिली स्त्रीके मरनेपर अथवा कई सूरतोंमें उसके जीते जी भी दूसरा विवाह कर सकता है मनु इस विषयमें यों कहते हैं--देखो मनु ० ५ श्लोक १६७, १६८, १६६.
एवं वृत्तां सवर्णां स्त्रीं द्विजातिः पूर्वमारिणीम् दाहयेदमिहोत्रेण यज्ञपात्रैश्च धर्मवित् । १६७ भायायै पूर्वमारिण्यै दत्त्वामीनन्त्यकर्मणि पुनरिक्रियां कुर्यात् पुनराधानमेव च । १६८ अनेन विधिना नित्यं पञ्चयज्ञानहापयेत् द्वितीयमायुषोभागं कृतदारो गृहे वसेत् । १६६
धर्मके जानने वाले द्विजातिको उचित है कि, यदि उसकी सबृत्तिशालिनी सवर्णा स्त्री उससे पहले मरजाय तो अग्निहोत्रकी श्राग और यज्ञ के पात्रोंसे उसका दाह करे । उसकी प्रेत क्रिया समाप्त होनेपर फिर अपना दूसरा विवाह करके अग्निहोत्र ग्रहण करे । पूर्वोक्त विधिसे सदा पञ्चमहायज्ञ करे इस प्रकारसे विवाह करके अपनी आयुका दूसरा भाग गृहस्थाश्रममें बितावे । यही बात याज्ञवल्क्यके १ अ५ प्रकरण ३ में है याज्ञवल्क्यने कई सूरतें ऐसी बतायीं हैं कि स्त्रीके जीवन कालमें पति दूसरा विवाह करे देखो-- याज्ञवल्क्य अ० १ श्लोक ७२, ७३, ७३.
गर्भभर्तृवधादौ च तथा महति पातके सुरापी, व्याधिता, धूर्ता, बन्ध्यार्थप्न्यप्रियंवदा । स्त्री प्रसूश्चाधिवेत्तव्या पुरुषदेषणी तथा अधिविना तु भर्तव्या महदेनोन्यथा भवेत् ।
पुरुषको उचित है कि, गर्भपात कराने वाली, भर्ताके बधका उद्योग करने वाली, महापातकी, मदिरा पीने वाली, सदा रोग ग्रस्त रहने वाली, धूर्ता, बन्ध्या बहुत खर्च करने वाली, अप्रिय बचन बोलने वाली, सदा