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विवाह
[दूसरा प्रकरण
बनियां थे । विवाहमें बिरादरीके लोगोंने भोजन किया था। पति और पत्नीमें जल्द झगड़ा शुरू होगया वे दोनों अलहदा अलहदा रहने लगे । ता० २८ जुलाई सन १९२० ई० को मुद्दई गुलाब बाईने दावा दायर किया कि विवाह नाजायज़ करार दिया जाय और १०,०००) रु० बतौर हरजाना मुद्दालेह से दिलाया जाय । मुद्दालेह पति ने जवाब में कहा कि विवाह जायज़ है और क्रास सूट ( उलटा दावा ) यह किया कि पति-पत्नी के पारस्परिक अधिकारों के प्राप्त करने की डिकरी दी जाय । अदालत मातहतने दावा खारिज किया और उलटे दायाकी डिकरी दी।
__ मुद्दई गुलाब बाईने हाईकोर्ट बम्बईमें अपीलकी। विचार पति जस्टिस शाहने लम्बी तजवीज़ दी जिसका मर्माश यह है: - ____ यह दावा गुलाब बाई नावालिग की तरफसे उसकी वली नान्दू बाई ने, विवाह नाजायज़ करार दिये जाने और १०,०००) रु० हरजाना दिलाये जानेके लिये किया है। यह भी कहा गया है कि विवाह जालसाज़ी से हुआ। मुद्दालेहका कहना है कि लड़की गुलाब बाई जगजीवनदास वैश्यकी लड़की है और विवाह ठीक वैश्य जातिकी विधिसे हुआ तथा पति-पत्नीके पारस्परिक सम्बन्धकी डिकरी दी जाय। यह बात दोनों पक्षों को स्वीकार है कि विवाह हुआ और एक वक्त पति-पत्नीका सम्बन्ध हुआ। यह भी स्वीकार किया गया है कि गुलाब बाई, जगजीवनदास और दुर्गा बाई से पैदा हुई जो मराठा स्त्री थी तथा दुर्गा बाईका विवाह जगजीवनदास के साथ नहीं हुआ था। अदालत मातहतने गुलाब बाईकी ज़ात शूद्र मानी किन्तु वह विवाहके समय वैश्यकी तरह रहती थी।
अपीलांट गुलाव बाईकी तरफसे बहसकी जाती है कि विवाह नाजायज़ है क्योंकि लड़की दरअसल शूद्र जातिकी है यद्यपि वह वैश्य मान ली गयी थी तथा वैश्य विरादरीने भी मञ्जूर कर लिया था मगर इससे विवाह जायज़ नहीं हो सकता और हिन्दूलॉ के अनुसार वैश्य पुरुष तथा शूद्रा स्त्रीके साथ विवाह नाजायज़ माना गया गया है।
मुद्दालेहकी बहस है कि हिन्दूलॉ के अनुसार जैसाकि बृन्दावन बनाम राधामनी 1888 I. L. R. 12 Mad, 72 में तय किया गया है कि "लड़की की जाति उसकी मां की अपेक्षा ऊंची और बाप की अपेक्षा नीची होना चाहिये' इस सिद्धांतका प्रमाण देखो मनु अध्याय १० श्लोक ४१ और याज्ञवल्क्य आचार० श्लोक ६१, ६२, ६५ और ६६ इन वचनोंकी शक्ति यह है कि स्त्री अनुलोमज जातिकी विवाह कार्यमें मान्य है किन्तु प्रतिलोमज़ नहीं। (अनुलोमज और प्रतिलोमजकी व्याख्या देखो दफा १)
"द्विजोंमें अनौरस सन्तान, उत्तराधिकारसे वंचित रखी गयी है मगर उस सन्तानको केवल भरण-पोषण का हक माना गया है। उन स्त्रियों की जाति