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विवाह
[दूसरा प्रकरण
१- अगर वर और कन्या दोनोंका उनके पिताओंके द्वारा सात पीढ़ी
के अन्दर एक ही मूल पुरुष हो अर्थात् वर और कन्या अपने अपने पिता, पितामह, आदिके क्रमसे सात पीढ़ीके अन्दर या सात पीढ़ीमें एकही किसी मूलपुरुषसे संबंध रखते हों ( सात
पीढ़ीके बाहर न हों) या २- अगर वर और कन्या दोनों का माता की तरफसे एकही
मूलपुरुष हो और वह पांच पीढ़ीके अन्दर हो (पांच पीढ़ीके
बाहर न हो) यही सिद्धांत घोष हिंदू लॉ दूसरे एडीशनके पेज ६८०, भट्टाचार्य हिंदू लॉ के दूसरे एडीशनके पेज ६०; घारपुरे हिंदू लॉके दूसरे एडीशनके पेज ३०७, मुल्ला हिंदू लॉ दूसरे एडीशनके पेज ३६१ में, तथा दिवेलियन हिंदू लॉ दूसरे एडीशनके पेज ३६ में उद्धृत किये गये हैं।
इन सिद्धांतोंके उदाहरण देखो(धर्मसिंधौ तृतीय परिच्छेदे पूर्वार्द्ध तृतीय पादे )
इस नकशे में 'विष्णु' यह मूल पुरुष माना गया है नं०१ नं०२ नं०३
नं०४ विष्णु१ । विष्णु१ । विष्ण
विष्ण१
कांति
२ गौरी दत्त २ चैत्र दत्त २ चैत्र ३ हर | सोम ३ मैत्र | सोम ३ मैत्र ४ मैन सुधी ४ बुध सुधी ४ बुध ५ शिव श्यामा ५ रति श्यामा ५ नर्वदा
| शिव ६ गौरी शिव ६ काम ७अच्युत
रमा ७ कवि ८ काम
दत्त २ चैत्र सोम ३ मैत्र
घी ४ बुध श्यामा ५ शिव कांति ६ हर
पीढ़ी
पीढ़ी
नं०१-विष्णु मूलपुरुषके दो कन्यायें हुयीं जिनका नाम कांति और गौरी है. उन कन्याओंसे सुधी और हर दो पुत्र हुए फिर उन लड़कोंसे बुध और मैत्र, उनसे चैत्र और शिव, उनसे गण और भूप, उनसे मृड़ और अच्युत लड़के पैदा हुए मृड़के रति नामकी कन्या और अच्युतके काम नामक