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दफा ४२
विवाहके भेद आदि
गर्भ रही नहीं सकता था और अन्तमें उसी बीमारीमें मरगया, अदालतके पूर्वोक्त निश्चित सिद्धांत के काटने के लिये काफ़ी नहीं है ।
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हर एक पुत्र औरस पुत्र है, अदालतको यह बात स्वयं मानलेना सिर्फ यादे हुये स्त्री पुरुषों की संतान में होता है, मगर यदि कोई आदमी खुद यह कहता हो कि, मैं अमुक पुरुषका अनौरस पुत्र हूं तो उसको अपना यह सम्बंध अन्य रिश्तेदारियों की तरह स्वयं साबित करना होगा - गोपालसामी चट्टी बनाम अरुणाचलम् चट्टी 27. Mad. 32-34-35.
जहां पर एकबार (Defacto) यानी वास्तवमें (बाक्नई) विवाह क़रार दे दिया गया हो और मृत पुरुषने लड़कों को अपना लड़का मान लिया हो तो इस बात साबित करने के लिये बहुत ही मज़बूत शहादत अदालत में पेश करना होगी कि उन लड़कों की माता विवाह करनेका अधिकार नहीं रखती थी, इसलिये क़ानूनन् वे लड़के औरत नहीं हैं, देखो -- रामामनी अम्मल बनाम कुलंथाई नाडचियर 14 M. I. A. 346.
स्त्री, पुरुष के श्रादतन् साथ रहने से तथा इस बातकी शोहरतसे कि वे दोनों पति-पत्नी हैं, अदालत स्वयं पहिलेसे यह मानलेगी कि उनका विवाद क़ानूनन जायज़ था । अदालतके ऐसा मानलेने का खण्डन करने के लिये बहुत मज़बूत, स्पष्ट और संतोषप्रद तथा क़तई यक़ीन दिलानेवाली, अकाट्य शहादत पेश करने की ज़रूरत है । और उस सूरत में जबकि विवाहको बहुत समय बीत गया हो और पति या पत्नी दोनों में से एक मर गया हो तो ऐसी सूरत मैं वैसी शहादत पेश करना खास तौरसे मुशकिल होगा; देखो - शास्त्री वि. - लाइ दर अरोनगरी बनाम सिबेक ही बयगाली L. R. 6; A. C. 364; 20 Mad. L. J. 49.
बरमा एक हिन्दू पुरुष और एक स्त्री जिसका नाम बरमी स्त्रियों का सा था पचास वर्षले पति पत्नी के तौर पर इकट्ठे रहते थे, सवाल पैदा हुआ कि क्या उनका विवाह जायज़ माना जाय ? अदालतने फैसला किया कि उनका विवाह जायज़ था -- वानू गोपाल बनाम कृष्णस्वामी मुदलियार 3 Lower. Burma Reports 25.
स्त्री पुरुष के केवल एक साथ रहने से ही यह नहीं मानलिया जायगा कि विवाह जायज़ था- वारू बनाम कुंदन 3A L J 807.
हिन्दूलों के अनुसार जब दो व्यक्ति साथ साथ पति और पत्नी की भांति रहते हों, और उनके सन्तान हों, तो विवाहकी कल्पना होगी और सन्तान जायज़ समझी जायगी । साधारणतया उच्च वर्ण हिन्दूके सम्बन्धर्मे जायज़ शादी और सन्तानके क़ानूनी होने की कल्पनाके खण्डनमें यह प्रमाण पर्याप्त है कि पति और पत्नीके विभिन्न जाति होनेका सुबूत दिया जाय । सागरमल बनाम हरस्वरूप 7 L. R. 156 ( Rev. )
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