________________
दफा ४० ]
विवाहके भेद आदि
अर्थात् जब ऐसा कहकर कि तुम दोनों (वर, कन्या ) धर्माचरण करो, भूषण दिसे पूजित करके वरको कन्या दी जाती है तब वह प्राजापत्य नामका विवाह कहलाता है ।
५१
( ५ ) आसुर विवाह -
ज्ञातिभ्यो द्रविणं दत्वा कन्यायै चैव शक्तितः कन्याप्रदानं स्वाच्छन्द्यादा सुरो धर्मउच्यते । मनु३-३१
अर्थात् कन्याके पिता आदि सम्बन्धियोंको अथवा कन्याको यथा शक्ति धन देकर जब कोई इच्छा पूर्वक कन्या ग्रहण करता है तब उसे श्रासुर विवाह कहते हैं ( देखो दफा ४१ )
(६) गांधर्व विवाह-
इच्छयान्योन्यसंयोगः कन्यायाश्च वरस्य च
गांधर्वः स तु विज्ञेयो मैथुन्यः कामसंभवः । मनु३-३२
अर्थात् कन्या और वरका परस्पर प्रीतिसे जो मिलन हो जाता है उसको गांधर्व विवाह कहते हैं ( देखो दफा ४१ )
(७) राक्षस विवाह-
हत्वा छित्वा च भित्वा च क्रोशतीं रुदतीं गृहात् प्रसह्य कन्याहरणं राक्षसो विधिरुच्यते । मनु ३-३३
अर्थात् जब कन्या के पक्ष के लोगोंको मार, काट तथा गृहको भेद कर रोती और पुकारती हुई कन्याको हरण करके विवाह किया जाता है तब उस को राक्षस विवाह कहते हैं ।
( ८ ) पैशाच विवाह -
सुतां मत्तां प्रमत्तां वा रहोयत्रोपगच्छति
स पापिष्ठो विवाहानां पैशाचश्चाष्टमोऽधमः । मनु३-३४
जिस विवाह में सोती हुई अथवा मदपानसे मतवाली या उन्मत्त कन्या को एकांत मैथुन पूर्वक ग्रहण करता है उसे सब विवाहोंसे नीच आठवां पैशाच विवाह कहते हैं ।
प्रायः अनेक स्मृतियोंमें यही आठ प्रकारके विवाह मानेगये हैं । प्रमाण के लिये देखो - याज्ञवल्क्य स्मृति १ अध्याय ५८- ६१ : शंख स्मृति ४ अ०