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हिन्दूलॉ के स्कूलों का वर्णन
दफा ३१ रवाज तीन तरह की होती हैं
रवाजें तीन तरहकी होती हैं ( १ ) लोकल - स्थानीय ( २ ) क्लास-यानी जातीय (३) फेमिली कस्टम - यानी खानदानी रवाज । यही तीन क़िस्मकी वाजे अदालतमें साबित की जाती हैं। अगर क़ानून रवाजके खिलाफ़ हो तो रवाज साबित कर देनेसे क़ानूनका असर रद हो जाता है (देखो दफा १० )
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[ प्रथम प्रकरण
दफा ३२ रवाज कैसे साबित की जायगी ?
रवाज जो किसी खानदानमें या किसी खास ज़िले में बहुत दिनों से मानी जाती हो वह क़ानूनका दरजा रखती है । मगर उस रवाजको प्राचीन होना चाहिये, निश्चित होना चाहिये और उचित होना चाहिये तथा सर्वसाधारण नियमोंके अन्दर होना चाहिये और उसे ठीक तौर से माना जाना चाहिये मतलब यह है कि वह रवाज क़ानूनका दरजा रखेगी जो प्राचीन हो, निश्चित हो, उचित हो, तथा श्राम क़ायदेके विरुद्ध न हो देखो - हरप्रसाद बनाम शिवदयाल (1876 ) 3 I. A. 259, 285; और यह भी ज़रूरी बात है कि जब कोई रवाज साबित की जाय तो साफ तौरपर और विश्वास करने योग्य साक्षियोंके द्वारा साबित होना चाहिये; देखो - रामलक्ष्मी बनाम शिवनाथ 14 M. I. A. 570, 585; गोपाल एय्यान बनाम रघुपति एय्यन 7 Mad. H C. 250, हरनाम बनाम मांडिल 27 Cal.379; रूपचन्द बनाम जम्बू 37 1 A. 93. रवाजकी प्राचीनता का सुबूत मुद्दत या समयकी कोई अवधि नहीं नियतकी जा सकती। किसी रवाजके सम्बन्धमें यह शहादत होना कि उसका अस्तित्त्व शहादत देने वालेकी स्मृति से है, उसके प्राचीनताके लक्षण हैं । अदालती फैसले किसी रवाजके साबित करनेमें सहायक होते हैं । राजे दत्ताजीराव बनाम पूरनमल, 3M. H. C. R. 75; 17 A]]. 87; 20Mad. 387; 23 Bom 366; A.I R. 1925 P C. 217;1927 A. P.R. Nag. 89. पारिवारिक रवाज -- रवाज के सम्बन्ध में अत्यन्त श्रावश्यक शहादत यह नहीं है कि उसके अस्तित्त्वके सुबूतमें बहुतसी रायें ज़ाहिर की जांय बल्कि न मौकों की जांच की जानी चाहिये, जिनमें कि उस रवाजके अनुसार काम किया गया है और न्याय विभाग या माल विभागकी मिस्ले या खानगी कागज़ात या रसीदें जिनसे यह मालूम होता हो, कि उस रवाजसे काम लिया गया है, पेशकी जानी चाहिये । यद्यपि यह अनिवार्य नहीं है कि अदालती फैसले उस सम्बन्धमें हों हीं, किन्तु किसी रंवाजी क़ानूनके प्रमाणित करने के लिये, एक्टकी यह मन्शा है कि वह एकसां, समान और निरन्तर हो ।
यदि कोई उत्तराधिकार का विशेष नियम, किसी परिवार में कुछ वर्षो से चला आता हो, तो उसकी पावन्दी परिवार पर नहीं समझी जासकती,
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