________________
बाल विवाह निषेधक एक्ट
(ए) वह यह हुक्म देवे कि जुर्माना हुक्मकी तारीख से तीस दिन के अन्दर किसी तारीख को या उसके पहिले, एक मुश्त या दो या तीन किस्तों में, जिसमें पहिली क्रिस्त हुक्मकी तारीख से तीस दिन के अन्दर किसी तारीख को या उसके पहिले वाजिबुल अदा होगी और बाकी क्रिस्त या किस्तें एक एक महीने के अन्दर अदा की जावेंगी;
( १८ )
(बी) वह सजाके भुगतने को रोकने का हुक्म देवे और मुल्जिमको उसके इस शर्त पर मुचलका लिखने या जमानतदार पेश करने पर, जैसा कि अदालत ठीक समझे, कि वह उस तारीख या उन तारीखों पर अदालत में हाजिर किया जावेगा, जिस पर या जिसके पहिले जुर्माना या उसकी क्रिस्त अदा करनी है; और अगर लुर्माने की रक्रम या कोई क्रिस्त, जैसी कि दशा हो वाजिबुल् अदा की आखिरी तारीख पर अदा न की जावे, तो अदालत यह हुक्म दे सकती है कि सजा के भुगतनेका हुक्म फौरन शुरू किया जाये ।
२ उप दफा २ के हुक्म ऐसे मामलों में भी लागू होंगे, जिनमें ऐसे रुपयोंकी अदाई का हुक्म है, जिनके अदा न करने पर सजाका हुक्म दिया जासकता है और जिनमें रुपया उसी वक्त अदा न किया गया हो। अगर वह व्यक्ति, जिसके खिलाफ हुक्म दिया गया हो, जमानत देनेका हुक्म होने पर जमानत पेश न करें, जैसा कि उपदफा बतलाया गया है तो अदालत उसे एकदम जेलकी सत्ताका हुक्म दे सकती है।
३८९— हर एक वारण्ट किसी सत्ता के हुक्मकी तामीलके लिये उस जज या मजिस्ट्रेटके हुक्मसे, जिसने सजाका हुक्म दिया हो, या उसकी जगह पर आये हुए अफसर के हुक्मसे जारी किया जासकता है ।
नोट :- उपरोक्त दफा ३८६, क्रिमिनल प्रोसीजर कोड एमेन्ड मेन्ड एक्ट नं० १८ सन् १९२३ ई० की दफा १०२ के द्वारा इस प्रकार संशोधित हो चुकी है। जब तक कि दूसरे कानूनमें जुरमाना करनेका खास तरीका न बता दिया गया हो तब तक कुल फौजदारी सम्बन्धी कानूनों के अनुसार जुरमाना इस दफाके मुताबिक वसूल किया जावेगा देखो जनरल लाजेज एक्ट नं० १० सन् १८९७ ई० की दफा २५ और देखो - 22 Cal. 139. मजिट्रेटको इस दफा के (ए) के अनुसार उचित है कि अपराधीकी जायदाद मनकूला कुर्क व नीलाम करके जुरमाना वसूल करे खेतमें खड़ी फसल पर शामिल शरीक खानदान की जायदाद कुर्क a नीलाम नहींकी जायगी। मगर अंक (बी) के अनुसार गैर मनकूला जायदाद उसी तरह कुर्क व नीलाम होगी जैसे दीवानीकी डिकरी होने पर मदियूनकी गैर मनकूला जायदाद के कुर्के व नीलाम करानेका क्रायदा काममें खाया जाता है । अगर कुर्क किये हुए माल पर कोई तीसरा व्यक्ति अपना हक जाहिर करता हो तो ऐसे इक्र का निपटारा सरसरी तौर पर मजिस्ट्रेट करदेगा । इस दफामें यह बताया गया है कि जुरमाना बतौर डिकरीके समझा जायगा और उसकी वसूली कलक्टर के मारफत उसी तरह की जावेगी जिस तरह दीवानीकी डिकरियों का रुपया वसूल किया जाता है देखो - 20 Cal. 478. इस दफा के अनुसार कुर्की के हुक्मकी नजर सानी नहीं की जा सकती अगर किसी तसिरेका माल, गलती से अपराधीका माल समझ कर कुर्क किया गया हो उसे अदालत दीवानीमें खरीदार या सेक्रेटरी आफ स्टेटके खिलाफ दावा करना चाहिये देखो -- Mal. 44.
जानता फौजदारी की दफाएं ३८७, ३८८ और ३८९ बहुत साफ हैं । पाठक आप यह ध्यान राखेये कि इस कानून में जहां पर जुरमाना न अदा करनेकी सूरत में सजा देना साफ तौरसे मना कर दिया गया है वहां पर मजिस्ट्रेट इसके खिलाफ नहीं कर सकेगा और जुरमाना के बदले सजा नहीं दे सकेगा ।
॥ इति ॥