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बाल विवाह निषेधक एक्ट
और प्रारम्भिक जांच करनेके बाद जब अदालत कोई हुक्म देवे तो उसे साफ तौरसे कहना चाहिये कि वह या तो इस्तगासे को खारिज करता है अथवा उसकी रायमें आगेकी कार्रवाई की जाना चाहिये तथा वह सम्मन या वारण्ट जारी करनेका हुक्म देवे जैसा कि अवसर हो। बम्बईक मजिस्टेट बहधा यह लिखा करते हैं कि नोटिस रद्द किया गया ( Notice Discharged ; सो इस प्रकारकी कार्रवाई ठीक नहीं है। ठीक रास्ता यह है कि इस्तगासा खारिज कर दिया जात्र देखा-52 Bom. 4483; A. I. R. 1928 Bom. 290..
मद्रास हाई कोर्ट ने एक मामलेमें इस प्रकार तय किया है कि एक मजिस्ट्रेटने दफा २०३ के अनुसार इस्तगासा खारिज कर दिया था उसकी ग्विीज़न (निगगनी) सैशन्स जजके यहां की गई। सैशन्स जजने मुलजि. मानके नाम नोटिस जारी करने तथा उनके बयान सुनने के बाद आयन्दा तहकीकात का हुक्म दिया। हाईकोर्ट ने यह तय किया कि चैप्टर १६ के अनुसार होने वाली तहकीकातोंमें मुलजिमकी कोई स्थिति नहीं है और मुलजिमानके नाम सैशन्स जज द्वारा नोटिसका जारी किया जाना यदि गर कानूनी नहीं तो अनुचित अवश्य समझना चाहिये,
खे--A. I. R. 1928. Mad. 1198. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी एक मामलेम इसी प्रकार तय किया है जब कि किसी मजिस्ट्रेटने दफा २०३ के अनुसार इस्तगासे को खारिज किया हो तो सैशन्स जज दफा ४३६ के अनुसार रिवीजनमें केवल और तहकीकातके किये जाने का हुक्म दे सकता है । वह इस बातका हुक्म नहीं दे सकता है कि मजिस्ट्रेट मुलजिमको जवाबदेहीके लिये तलब करे । इसी मामले में यह भी तय किया गया था कि यह कहना गलत है कि अगर मजिस्ट्रेटको शहादत ना काफी मालूम पड़े तथा इस्तगासा झूठा समझ पड़े तब भी उसे यदि इस्तगासे की त ईदमें कुछ शहादत दी गई हो मुलजिमको तलब करना चाहिये अर्थात् ऐसी दशामें वह मुलजिमको तलब करनेके लिये बाध्य नहीं है । ऊपर बतलाई हुई स्थिति के उपास्थत होने पर मजिस्ट्रेट इस्तगालेको जायज तौर पर खारिज कर सकता है, देखो--नयात हुसेन बनाम सरकार बहादुर A. I. R. 1928. All. 684. दफा ११ मुस्तगीससे जमानत लेनेके अधिकार
(१) मुस्तगीसके बयान लेने के बाद तथा मुलजिमकी हाज़िरीके लिये इत्तला. मामा जारी करनेस पहिले अदालत किसी समय भी मुस्तगीससे सौ रुपये तककी दस्तावेज़ (मुचलका ) बिला ज़मानती या मय ज़मानतक दाखिल करायगी परन्तु घह तहरीरी वजूहात बतलाने पर ऐसा नहीं भी कर सकती है । यह दस्तावेज उस मुआविज़की अदायगीके लियं होगी जो मुलजिमको सन् १८६८ ई० के संग्रह जाबता फौजदारीकी दफा २५० के मुवाफिक मुन्तगीससे दिलाया जा सकता है और यदि एसी ज़मानत अदालत द्वारा नियत किये हुए पर्याप्त समयकं अन्दर नहीं दाखिलकी जावेगी तो वह इस्तगासा खारिज कर दिया जावेगा।
(२) इस दफाके अनुसार जो दस्तावेज़ लिख.ई जावेगी वह सन् १८६८ ई० के संग्रह ज़ाबता फौजदारीके अनुसार लिखाई दस्तावेज़ समझी जावेगी और इसीलिये उक्त संग्रह जाबता फौजदारीका ४२ वां प्रकरण लागू होगा।
व्याख्याइस दफाके अनुसार मुस्तगासे सौ रुपये तकका मुचलका या जमानत ली जावेगी यह जमानत मुस्तगीस के बयान होने के पश्चात् तथा मुलजिमके नाम सम्मन जारी किये जानेसे पहिले ली जाना चाहिये । अदालतको