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बाल विवाह निषेधक एक्ट
नाबालिग ही माना जायगा जब तक कि १८ सालकी उम्र पूरी न हो जाय अर्थात् १९ वें सालके शुरू होते ही नाबालिगी समाप्त हो जाती है। दफा ३ बच्चेसे विवाह करने वाले उस पुरुषके लिये दण्ड जो २१ सालसे
कम उम्रका हो
पुरुष जातिका १८ सालसे अधिक किन्तु २१ सालसे कम उम्रका जो व्यक्ति बाल विवाह करेगा उसको एक हज़ार रुपये तकके जुर्मानेका दण्ड दिया जासकेगा।
व्याख्याबाल विवाह करने वाले उन पुरुषोंके लिये जिनकी उम्र १८ सालसे ऊपर परन्तु २१ सालसे कम हो केवल १०००) एक हजार रुपये तकके जुर्माने का दण्ड रखा गया है अर्थात् उनको कारावासका दण्ड नहीं दिया जावेगा जैसा कि २१ सालसे अधिक उम्र वाले पुरुषों को दफा ४ के अनुसार दण्ड दिये जानेका विधान है। अदालत १०००) से कम कितना भी जुर्माना कर सकती है मगर इससे ज्यादा नहीं कर सकती अंग्रेजीमें शब्द 'पनिशेबुल' (Punishable) है जिसका तात्पर्य यह है कि अदालत चाहे तो अपराधीको छोड़ भी देवे । यदि मामला चालू होने पर कोई व्यक्ति अपनी उम्र २१ सालसे कम अथवा १८ सालसे कम होना जाहिर करे तो इसके साबित करनेका बार सुबूत उसी व्यक्ति पर होगा। उम्रके लिये इस सम्बन्धमें सनद प्राप्त किये हुए डाक्टरकी राय माननीय होगी अन्य योग्य डाक्टरोंकी गय मानी जासकती है इसी प्रकार लड़के लड़कीके माता पिता व अन्य सम्बन्धियों की शहादत भी उम्र सावित करनेमें मदद दे सकती है। म्यूनिसिपैलिटी या डिस्ट्रक्ट बोर्डके रजिस्ट्रोंमें किये हुए पैदाइशके इन्दराज तथा थानेमें किये हुए या अन्य किसी रजिस्टर में जो इसी कार्यके लिये रखा जाता हो किये हुए इन्दराज भी उम्र साबित करनेके सुबूत माने जासकते हैं। हिन्दुओंमें जन्म कुण्डली तथा पण्डितोंके पत्रे जिनमें पैदाइशके सम्बन्धके नोट किये गये हों शहादतमें पेश किये जासकते हैं। स्कूल व कालेज तथा अन्य शिक्षा विभागामें पढ़ने वाले लड़के व लड़कियों की उम्र शिक्षालयके सार्टीफिकेटके अनुसार मानी जासकती है। ऊपर बतलाये हुए सब या उनमेंसे कोई सुबूत आने पर उससे उम्र का साबित होना माना जासकता है जब तक कि उसके विरुद्ध उससे अधिक प्रमाणिक कोई सुबूत न पेश किया जावे उम्रका सवाल एक वाक्रियाती सवाल है जिसका निर्णय करना अदालत पर निर्भर है परन्तु अदालतका इस सम्बन्धमें कर्तव्य होगा कि वह शहादत पर पूर्ण रूपसे विचार करनेके बाद तथा अन्य वाकियातको देखते हुए ऐसे प्रश्नको तय करे।
स्कूलों में अपने लड़के को भरती करते समय अकसर लोग लड़केकी उम्र कम लिखाते हैं ताकि आये उस लड़केकी वृत्तिके सम्बन्धमें जहां पर उम्रकी कैद लगी है अड़चने न पैदा हो जावें इसलिये जहां पर पैदाइशके इन्दराज और स्कूलके इन्दराजमें फरक पड़ता हो तो सम्भव है कि अदालत स्कूलके रजिस्टरमें दर्ज उम्र पर ज्यादा महत्व नहीं देगी वल्कि पैदाइशके इन्दराजको महत्व देगी। जन्म पत्रोंके द्वारा उम्र साबित की जासकती है मगर यह बात सब जानते है कि जन्म पत्र नकली तैय्यार होना बहुत सहज काम है यदि दूसरे अन्य ढंग जन्मपत्रके उम्रको समर्थन करते हों तो जन्मपत्रका प्रमाण उतना ही अधिक बढ़ जायगा। जहां पर दोनों पक्षकारोंकी शहादत सिर्फ जबानी गवाहोंके आधार पर हो तो जन्म पत्रके द्वारा साबित करने वाले पक्षकारों का महत्व अधिक माना जा सकता है।