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धार्मिक और खैराती धांदे
[सत्रहवां प्रकरण
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है । कानूनमें इसे “प्रक्रिप्टिव राइट " ( Prescriptive right ) कहते हैं देखो-- 24 Mad. 2197 27 Mad. 1927 33 I. A. 189; 37 Cal. 885.
मेनेजरको अधिकार नहीं है कोई महन्त या धर्मादेका दूसरा प्रधान पुरुष 'उत्तराधिकार' नहीं बदल सकता। और वह उस आदमीकी जगह जो वास्तवमें उत्तराधिकारी है दूसरा उत्तराधिकारी नहीं बना सकता वास्तव में उत्तराधिकारी वह हो जाता है जिसे वह एक दफा उत्तराधिकारी बना चुका हो; देखो-7. C. W. N. 145; 11 M. I. A. 405; 8 W. R. P. C. 25%; उदाहरणके लिये जैसे एक महन्तने अपने चेले रामानन्दको अपना उत्तराधिकारी बनाया अब दोनोंमें वैमनस्य हो गया तो महन्तजी उसे उत्तराधिकारी से च्युत नहीं कर सकते जब तक कि कोई रवाज़ विरुद्ध सिद्ध न हो। दफा ८६५ धर्मादाके स्थापकका हक
मेनेजर नियत करनेकी कोई बात अगर धर्मादेकी शोंमें न हो, और नरवाज हो, या वह आदमी जो मेनेजर नियुक्त करनेका हक रखता हो किन्तु उसने नियुक्त न किया हो तो मेनेजर नियुक्त करनेका हक फिर धर्मादेके स्थापक या उसके वारिसोंको प्राप्त होता है । देखो-16 I. A. 137, 17 Cal. 3; 18 All. 2277 28 All. 689; 32 All. 461;29 All.663; 32 Cal. 129 5 B. L. R. 181; 13 W. R. C. R. 3963 7 Cal. 304; 31 I. A. 203.
खाम्दानकी जो जायदाद खैरातके कामोंके लिये लगी हो उसके प्रबन्ध का हक आमतारै पर स्थापकके वारिसोंको मिलता है। लेकिन किसी खास सुरतमें सिर्फ एकही वारिसको मिलता है। देखो-34 Mad. 470.
जो आदमी शिवायत नियत किया गया हो अगर उसका खान्दान नष्ट हो जाय तो शिवायत नियत करनेका हक्क फिर स्थापकके खान्दानमें बला भाता है। 15 C. W. N. 126; 11 C. L. J. 2.
शिवायतपनका उत्तराधिकार-शिवायत शिप्का उत्तराधिकार प्रतिष्ठा करने वालेके खानदानमें होता है यदि कोई विरुद्ध शहादत न हो प्रमथनाथ बनाम प्रद्युम्नकुमार मलिक 3 Pat. L. R.315 A. I. R. 1925 P.C. 139 (P.C.).
इन्तकाल
दफा ८६६ देवोत्तर जायदादका इन्तकाल .. (१) हिन्दूलॉका साधारण नियम यह है कि जो जायदाद देवार्पण या धार्मिक कागके लिये दान कर दी गई हो वह जायदाद इन्तकाल करने योग्य