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दफा ८ ]
धर्मादेकी संस्थाके नियम
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मानो अनधिकारी मेनेजरने लिया था, मतलब यह है कि क़र्ज़ बहुत सोच समझकर और धर्मादेके उचित तथा आवश्यक लाभके लिये, जितनी ज़रूरत हो उतनाही नेकनीयतीसे लेना चाहिये ।
(१०) ज्ञात पाबन्द नहीं होगी - अगर मेनेजरने क़र्ज़ लेकर लिखत में अपनी जात पाबन्द न की हों तो धर्मादेके क़र्ज़के मामलोंमें उसकी ज्ञात पाबन्द नहीं होगी; देखो - प्यारेमोहन मुकरजी बनाम नरेन्द्र कृष्ण मुकरजी
5 C. W. N. 273.
(११) आमदनी का रेहन - मन्दिर या किसी दूसरे धर्मादेकी संस्थाके अत्यंत आवश्यक कामके लिये जब रुपया क़र्ज लेना हो तो कभी कभी धर्मानें की सालाना आमदनी रेहनकी जा सकती है। यहांपर धर्मादेकी आमदनी से वह आमदनी समझना चाहिये जो धर्मादेकी मूल जायदादकी आमदनी से भिन्न होती है । ऊपर कहे हुए 'अत्यंत आवश्यक' उद्देशके बिना था उसकी सीमा से अधिक कदापि रुपया क़र्ज नहीं लियाजायगा नरायन बनाम चिन्तामणि 5 Bom. 393.
सार्वजनिक कामोंके लिये सरकार जब धर्मादेकी ज़मीन लेकर उसका निःक्रय ( मुआवज़ा ) देती है तो उसकी कार्रवाई क्या होगी इसके लिये देखो - कामिनी देवी बनाम प्रमथनाथमुकरजी 39 Cal. 33. वह उसके मूलधनमें गिना जाता है ऊपर कहे हुए अत्यन्त आवश्यक उद्देशके अतिरिक्त और किसी सूरत में महन्त या मेनेजर या दूसरा ट्रस्टी धर्मादेकी जायदाद का इन्तक़ाल नहीं कर सकता और न उसे रेहन रख सकता है, देखो - 36 I. A. 148; 36 Cal. 1003; 27 I. A. 69; 29 Mad. 117; 39 Cal. 33.
(१२) बम्बई प्रांत की माफ़ी ज़मीन - बम्बई के एक्ट नं० २ सन् १८६३ की दफा ५ क्लाज़ ३ में लिखा है कि 'धार्मिक या खैराती संस्थाओंकी ज़मीन जो सम्पूर्ण रूपसे या कुछ हिस्सेसे माफी हो उसका इन्तक़ाल, नीलाम, या दान आदि किसी प्रकारसे नहीं हो सकता और ऐसी ज़मीन के लिये नज़राना देना होगा ' किसीको इन्तक़ालका अधिकार नहीं है 5 Bom. 393.
(१३) पहले के मेनेजरका क़र्ज़ - पहले के मेनेजरने जो क़र्ज़ क़ानूनी तौर से लिया हो और यह क़र्ज़ चाहे धर्मादेकी जायदाद पर न भी लिया गया हो, उसके लिये पीछे आने वाले मेनेजर पर दावा किया जासकता है, अदालत उस क़र्ज़ की जिम्मेदारी धर्मादेकी जायदाद पर डाल सकती है; देखो31 Mad. 47.
(१४) बिक्रीकी पाबन्दी - पहले के शिवायत या मठाधीश या मेनेजर पर किसी मुक़द्दमे में जो डिकरी हुई हो और उस डिकरीमें जाल फरेब कुछ भी न हो तो पीछे आने वाले शिवायत, मठाधीश और मेनेजर उस डिकरीका
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