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धार्मिक और खैराती धर्मादे
[सत्रहर्वा प्रकरण
(७) सदावर्त-एक वसीयतसे यह मालूम होता था कि वसीयत करने वालेका यह इरादा था कि किसी निश्चित स्थानपर निश्चित सदावर्त स्थापित किया जाय और अमुक जायदादकी आमदनी 'सदावर्तके खर्च के लिये ' काम में लायी जाय, जायज़ माना गया; देखो-17 Bom. 351; 14 Bom. 1.
(८) शिवमन्दिर या विष्णुमन्दिर-एक आदमीने वसीयतकी कि हमारे बैठकखानेके हातेमें किसी उचित स्थान पर और उचित खर्चसे एक शिवमन्दिर उसकी दूसरी इमारतों और बारा सहित बनाया जाय, जायज़ माना गया; गोकुलनाथ गुह बनाम ईश्वर लोचनराय 14 Cal. 22. इसी तरहका एक मुकद्दमा और था जिसमें यह हिदायत थी कि मेरी छोड़ी हुई सम्पत्तिसे अमुक काम किया जाय अदालतने उसे नाजायज़ माना 4 Cal. 508 किन्तु यह फैसला इन मुकदमोंमें नहीं माना गया देखो-रामवरन उपाध्याय बनाम पार्वतीबाई 31 Cal. 895; 8 C. W. N. 653, 1 Bom. H. C. 73.
(१)मन्दिर-एक आदमीने वसीयतकी कि अमुक मन्दिर जो बनरहा था पूरा करा दिया जाय और उसमें देवमूर्तिकी प्रतिष्ठाकी जायः देखोमोहरसिंह बनाम हेदसिंह (1910) 32 All. 337. या ठाकुरजी ऐसे स्थान पर स्थापित किये जायं जहां पर वसीयतकी तामील करने वाले उचित समझें दोनों जायज़ माने गये देखो-29 Cal. 260; 6 C. W. N. 267.
(१०) कालीदेवीकी पूजा-एकादमीने वसीयतकी कि कालीजीकी मूर्ति स्थापनकी जाय और अमुक लोगोंके हाथमें जो जायदाद दी गई है उसकी आमदनीकी बचत कालीदेवीकी सेवा और पूजामें खर्च की जाय जायज़ माना गया; भूपतिनाथ स्मृतितीर्थ बनाम रामलाल मित्र 37 Cal. 128; 14 C. W. N. 18.
(११) श्राद्ध -एक श्रादमीने अपने वसीयतमें टूस्टियोंको यह हिदा. यतकी कि हरसाल मेरे बाप, मां, दादा, परदादा, और मेरे मरने के बाद मेरी श्राद्धके अवसर पर ब्राह्मण भोजनमें उचित खर्च किया जाय और हर साल ब्राह्मणोंको और पाठशालाओंके पण्डितोंको जो संस्कृतका प्रचार करते हों दुर्गापूजाके अवसरपर उचित मेटें और दान दिया जाय, एवं हरसाल कार्तिक मासमें महाभारत और अन्य पुराणकी कथा और ईश्वरप्रार्थनाके लिये उचित रकम खर्च की जाय, इन सब कामोंके करनेसे जो रकम बचे उससे मेरी जाति की और गरीब ब्राह्मणोंकी लड़कियों का विवाह कराया जाय और मेरी जाति के तथा गरीब ब्रह्माणोंके और अन्य ऊंची जातियोंके गरीबोके लड़कों की शिक्षाके लिये खर्च किया जाय जैसाकि टूस्टी उचित समझें, जायज़ माना गया देखो - द्वारिकानाथ वैसाख बनाम बरौदाप्रसाद वैसाख 4 Cal. 443,