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धार्मिक और खैराती धर्मादे
[ सत्रहवां प्रकरणं
बहुत ज़रूरी नहीं है ज़बानी भी धर्मादा क़ायम हो सकता है, देखो - मदनलाल बनाम कुनलबीबी 8 W. R. 42; 3 Mad. L. J. 364. जिस मामले में हिन्दू विल्स एक्ट सन् १८७० ई० लागू होता हो और वसीयतके द्वारा कोई धर्मादा क़ायम किया गया हो तो ज़रूर 'वसीयत' लिखतमें होना चाहिये और उसपर कमसे कम दो गवाहोंके हस्ताक्षर भी होना चाहिये। जो हिन्दू कोई धार्मिक या खैराती संस्था स्थापित करना चाहता है वह हिन्दूलों के अनुसार उस संस्थाके स्थापित करनेका हेतु और किस धनया जायदादसे स्थापित करना अभीष्ट है स्पष्ट ज़ाहिर करके स्थापित कर सकता है। इसमें ट्रस्ट लाज़िमी नहीं है किन्तु यह लाजिमी है कि उस धार्मिक या खैराती संस्थाका साफ़ साफ़ स्पष्टीकरण किया जाय और उस जायदादका भी जो उसमें लगाई जाय । गर किसी देवमूर्तिके अर्पण जायदाद की गयी हो तो वह जायदाद वास्तवमें चढ़ाई नहीं जा सकती इसलिये यह ज़रूरी और लाजिमी है कि एक ट्रस्ट नियत करके जायदाद उसके अधिकारमें देदी जाय, देखो - 12 Bom. 247-263; 25 Cal. 112-127; 9 Cal. W. N. 528.
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देवोत्तर दान करने वाला नियमोंमें परिवर्तन कर सकता है, उन सूरतों के अतिरिक्त जबकि उसने अपनेको स्पष्टतया बिलकुलही पृथक कर लिया हो या जबकि किसी तीसरे फ़रीक़के अधिकारोंका अहित होता हो या जबकि उस परिवर्तन से दान सम्बन्धी मूल सिद्धान्त पर असर पड़ता हो - श्रीपति चटरजी बनाम खुदीराम बनरजी 41 C. L. J. 22; 82 I. C. 840; A. I. R. 1925 Cal. 442.
जायदाद के समर्पण करनेमें दस्तावेज़की श्रावश्यकता नहीं है--फ़रीकों के वर्ताव से समर्पणका साबित होना हो सकता है देवोत्तर जायदादसे, व्यक्तिगत लाभ उठाने के उदाहरण द्वारा, देवोत्तर जायदाद की हैसियत में कोई तबदीली नहीं होती -- श्री श्रीगोपालजी ठाकुर बनाम राधाविनोद मोंडल 41 C. L. J. 396; 88 L. C. 616; A. I. R. 1925 Cal. 996.
किसी देवता की प्रतिष्ठा किसी मन्दिरमें तब तक नहीं हो सकती, जब तक कि मन्दिरका मालिक उससे अपना अधिकार न हटाले । फलतः ज्योंही किसी मंदिरमें देवताओंका प्रतिष्ठान हो जाता है त्योंही वह मन्दिर उस देवता को समर्पित समझा जाता है - श्री श्रीगोपालजी ठाकुर बनाम राधाविनोद 41 C. L. J. 396; 88 I. C. 616; A. I. R. 1925 Cal. 996.
ट्रस्टकी दस्तावेज़ के लिखने के समय यह ध्यान रखना चाहिये कि उसमें ऐसी मुहम या अनिश्चित इबारत न लिखी जायकि जिसका मतलब उस दस्तावेज़के समग्र पढ़नेके पश्चात् सरांश में सन्देहित निकलता हो । जो जायदाद देवमूर्तिके अर्पण की गयी है ऐसी स्पष्ट रीति से लिखी गयी हो कि साधारण